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रचनाओनो सारो एवो फाल नूतन ढवे रजू का छे. स्तवनो अने पूजाओ आदिनी रचनानी चमत्कारी शैलिथी तेमणे अनेकना मन हरी लीधां छे. पोताना अभ्यास चालु राखवा साथे तेमणे अनेक ज्ञानपिपासुओनी ज्ञानपिपासा संतोषी छ. अनेक साथे चर्चाओ करी जैन शासनना अनुरागी बनाव्या छे, अनेकनी डगती श्रद्धाने स्थिर करी छे, अनेक स्थळोना कुसंपो मटाडी दीर्घकालना पडेलां तड तोडी एकता स्थापी छे, अनेक स्थळे भारे तपस्याओ, भव्य महोत्सवो अने स्वामिवात्सल्योद्वारा अटळक धनव्यय करावी जैन शासनने। डंको वगडाव्यो छे, अनेक स्थळे पोतानी शक्ति अने भक्तिद्वारा रोग शान्ति निपजावी छे, अने अनेक मुनिओने योगाद्वहन कराव्या छे. तथा शास्त्राभ्यास पण कराव्यो छे. व्याख्यानामां पण तेओ भावीक श्रावकोने महामूला आगम ग्रंथोना तथा अन्य धर्मशास्त्रोना रसनुं पान करावता रह्या छे. आ सर्वने परिणामे चतुर्विधसंघमां सर्वत्र तेमना तरफ पूज्यभाव दाखववामां आवतो हतो. तेमणे कुल ६४ चोमासां कर्या हतां, ते नीचे मुजवास्थळ
वर्ष १६ अमदावाद. सं. १९४३, ४४, ४५, ४८, ५७, ५८,
५९, ७६, ८१, ८३, ८६, ८७, ८८,
९०, ९२ अने ९५ १० पाटण सं. १९५०, ६१, ७५, ८०, ९३, ९८,
९९, २००१, २००२ अने २००३.
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