Book Title: Payaya Kusumavali
Author(s): Madhav S Randive
Publisher: Prakrit Bhasha Prachar Samiti
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* पाययकसमावलो
णाहाइदाणविसिट्ठभोगोवभोगाण न पज्जत्तो, ता कोडि कोडिसयं कोडिसहस्सं वा मग्गामि ।' एवमाइ चिंतंतो सुहकम्मोदएण तक्खणमेव सुहपरिणाम उवगओ संवेगं आवन्नो लग्गो परिभाविउं - 'अहो लोभस्स विलसियं। दोण्ह सुवण्णमासाण कज्जेण आगओ लाभं उवट्ठियं दट्ठण कोडीहिं पि न उवरमइ मणीरहो। अन्नं च, विज्जापढणत्थं विदेसं आगओ जाव ताव अवहीरिऊण जणणि अवगणिऊण उवज्झायहियउवएसं अवमण्णिऊण कुलं एईए इयर-- रमणीए जाणमाणो वि मोहिओ । ता अलं सुवण्णेण, अलं विसयसंगण, अलं संसारपडिबंधेण ।' एवमाइ भावेमाणो जाई सरिऊण जाओ सयंबुद्धो । सयमेव लोयं काऊण देवयाविदिन्नगहियायारभंडगो आगओ राइसगासं । राइणा भणियं-'किं चितियं ।' तेण य निययमणोरहवित्थरो कहिओ । पढियं च
'जहा लाभो तहा लोभो लाभा लोभो पवड्डइ । दोमासकयं कज्जं कोडीए वि न निट्ठिय ।।'
राया पहट्ठमणो भणइ-कोडि पि देमि, गिण्हसु अज्जो।' इयरेण भणियं-पज्जत्तं अत्थेण । परिचत्तो मए घरवासो।' तओ धम्मलाभिऊण रायाणं निग्गओ नयरीओ। छम्मासाणंतरं च उप्पन्नं से केवलं नाणं।
( उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा टीका. पा. १२३-१२५)
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