Book Title: Pati Patni Ka Divya Vyvahaar Author(s): Dada Bhagwan Publisher: Mahavideh Foundation View full book textPage 7
________________ अनुक्रम पेज नं. बाहर बचाये आबरू, बेआबरू घर में मगर! देखो उल्टा न्याय, मधुर भोजन में डाले कंकर! 'मेरी बीबी मेरी बीबी' कह, डाले ममता के पेच, 'नहीं मेरी, नहीं मेरी' कह, खोलो अंतर् के पेच! शादी कर के कहे पति, तेरे बिन कैसे जीएँ? मरने पर न हुआ 'सता', न ही कोई सती दिखे! यह तो आसक्ति पुद्गल की, नहीं यह सच्चा प्रेम ! न देखे दोष, न अपेक्षा, न द्वेष वहीं शुद्ध प्रेम! तू ऐसा, तू वैसी, अभेदता में आया भेद, हुआ शांति का अंत जो, हुआ ज़रा-सा भेद! एक आँख में प्रेम, और दूसरी में सख्ती जहाँ, देखे इस प्रकार पत्नी को, जीते संसारी वहाँ ! वन फेमिली होकर जीयो, करो नहीं मेरी-तेरी, सुधारने पत्नी को चला, क्या अपनी जात सुधारी ? आर्य नारी के माथे पर बिंदी, एक पति का ध्यान, सारा मुँह और भाल भर जाये, अगर लगाये परदेशन ! एक दूजे की भूल निभालो, वही प्रेममय जीवन, घटे-बढ़े नहीं कभी जो, वही सच्चा प्रेम दर्शन ! -- डॉ. नीरुबहन अमीन १. वन फ़ैमिलि (एक कुटुम्ब) २. घर में क्ले श ३. पति-पत्नी में मतभेद ४. भोजन के समय किट-किट ५. पति चाहिए, पतिपना नहीं ६. दूसरों की भूल निकालने की आदत ७. गाड़ी का गरम मूड ८. सुधारना या सुधरना? ९. कोमनसेन्स से 'एडजस्ट एवरीव्हेर' १०. दो डिपार्टमेन्ट अलग ११. शंका जलाये सोने की लंका १२. पतिपने के गुनाह १३. दादाई दृष्टि से चलो, पतियों... १४. 'मेरी-मेरी' की लपेटें उकलेंगी ऐसे १५. परमात्म प्रेम की पहचान १६. शादी अर्थात् 'प्रोमिस ट पे' १७. पत्नी के साथ तक़रार १८. पत्नी लौटाये तौल के साथ १९. पत्नी की शिकायतें २०. परिणाम, तलाक़ के २१. सप्तपदी का सार २२. पति-पत्नी के प्राकृतिक पर्याय २३. विषय बंद वहाँ प्रेम सम्बन्ध २४. रहस्य, ऋणानुबंध के... २५. आदर्श व्यवहार, जीवन में...Page Navigation
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