Book Title: Pati Patni Ka Divya Vyvahaar
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 52
________________ पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार इसे जीवन कैसे कहें? जीवन कितना सुशोभित होता है ! एक-एक मनुष्य की सुगन्ध आनी चाहिए। सब तरफ उसकी कीर्ति फैली हई हो कि कहना होगा, यह सेठजी हैं न, वे कितने अच्छे हैं, उनकी बातें कितनी सुन्दर, उनका वर्तन कितना सुन्दर ! ऐसी कीत सभी जगह दिखाई देती है? लोगों की ऐसी सुगन्ध आती है? प्रश्नकर्ता : कभी-कभी, किसी-किसी की सुगन्ध आती है। दादाश्री: किसी-किसी मनुष्य की, पर वह भी कितनी? और अगर उनके घर जाकर पूछो तो दुर्गंध होती है। बाहर सुगन्ध आती हो पर घर जाकर पूछो तो कहेंगे कि, 'उनका नाम ही मत लो, उनकी तो बात ही मत करना।' अतः यह सुगन्ध नहीं कहलाती। जीवन तो दूसरों की मदद के लिए ही होना चाहिए। यह अगरबत्ती सुलगती है, उसमें खुद की सुगन्ध लेती है वह? यह संसार जो है वह म्युजियम (संग्रहालय) है । म्युजियम (संग्रहालय) में शर्त क्या है? प्रवेश करते ही लिखा है कि तुम्हें जो खाना-पीना हो, जो देखना हो देखो. उसका जो मजा लेना हो लो, मगर कुछ भी बाहर लेकर निकलना नहीं और लड़ना नहीं। किसी के प्रति राग-द्वेष मत करना। खाना-पीना सब-कुछ मगर राग-द्वेष नहीं। पर यह तो अन्दर जाकर शादी रचाता है। अरे, शादी कहाँ रचाई?! बाहर जाते समय फजीहत होगी! तब कहेगा कि मैं बंध गया। कानून के अनुसार भीतर जाएँ और खाएँ-पीयें, शादी करें तो हर्ज नहीं। स्त्री (पत्नी) से कह देना, देखो यह संसार एक संग्रहस्थान है, उसमें राग-द्वेष मत करना। जब तक ठीक लगे तब तक घूमना-फिरना, लेकिन आखिर में हमें बिना राग-द्वेष निकल जाना है। उस पर द्वेष भी नहीं। कल सवेरे दूसरे के साथ घूम रही हो तब भी उस पर द्वेष नहीं, यह संग्रहस्थान ऐसा है। फिर हमें सुधरने के लिए जितनी-जितनी युक्ति करनी हो उतनी करें। अब संग्रहस्थान दूर नहीं कर सकता, जो हुआ वही सही अब तो। हम संस्कारी देश में जन्मे हैं न, इसलिए मेरेज-बेरेज (शादी-ब्याह) सबकुछ रीति से होना चाहिए! पति-पत्नी के प्राकृतिक पर्याय प्रश्नकर्ता : औरतों को आत्मज्ञान हो सकता है या नहीं? समकित हो सकता है? दादाश्री : वास्तव में नहीं हो सकता, पर हम यहाँ करवाते हैं। क्योंकि प्रकृति की कक्षा ही ऐसी है कि आत्मज्ञान पहुँचता ही नहीं। क्योंकि स्त्रियों में कपट की ग्रंथि इतनी बड़ी होती है, मोह और कपट की दो ग्रंथियाँ आत्मज्ञान को छूने नहीं देती। प्रश्नकर्ता : अर्थात् वह तो व्यवस्थित का अन्याय हुआ न? दादाश्री : नहीं, वह तो दूसरे अवतार में पुरुष होकर बाद में मोक्ष में जाएगी। ये सभी शास्त्रकार कहते हैं कि स्त्रियाँ मोक्ष में नहीं जाती वह बात एकांतिक नहीं है। बाद में पुरुष होकर फिर जाती हैं। ऐसा कोई कानुन नहीं हैं कि स्त्रियाँ स्त्री ही रहेंगी। वे परुष के समान कब होंगी. जब वे पुरुष के साथ स्पर्धा में रही हों और अहंकार बढ़ता जाए, क्रोध बढ़ता ही जाए तब वह स्त्रीपन उड़ जाता है। अहंकार और क्रोध की प्रकृति पुरुष की और माया और लोभ की प्रकृति स्त्री की. ऐसा करके चली है गाड़ी। पर हमारा यह अक्रम विज्ञान ऐसा कहता है कि स्त्रियों का भी मोक्ष हो सकता है। क्योंकि यह विज्ञान आत्मा जगाता है। आत्मज्ञान की अनुभव दशा नहीं हो तब भी हर्ज नहीं पर आत्मा प्रतीति के रुप में जगाता है। कितनी स्त्रियाँ ऐसी हैं कि दादा निरंतर चौबीसों घण्टे याद रहते हैं! हिन्दुस्तान में कितनी और अमरीका में कितनी होंगी कि दादा चौबीसों घण्टे याद रहते हैं! प्रश्नकर्ता : अतः आत्मा की कोई जाति ही नहीं है न? दादाश्री : आत्मा की जाति होती ही नहीं न! प्रकृति की जाति होती है। उजला माल भरा हो तो उजला निकले। काला भरा हो तब काला निकले। प्रकृति भी भरा हुआ माल है। जो माल भरा है वह प्रकृति और वैसे पुद्गल कहलाता है। अर्थात् पूरण किया उसका गलन होता रहता है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65