Book Title: Pati Patni Ka Divya Vyvahaar
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 51
________________ पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार ८७ अक्ल से काम होता हो तो अक्ल इस्तेमाल करना। फिर दूसरे दिन हम से कहे, 'तूने मेरे पैर छुए थे न?' तब कहना वह बात अलग थी। तुम क्यों भाग रहे थे, नासमझी का कार्य कर रहे थे, इसलिए छुए ! वह समझे कि इसने सदा के लिए छुए, वह तो उस समय के लिए, ओन द मोमेन्ट (तत्क्षण) था ! सप्तपदी का सार जीवन जीने की कला इस काल में नहीं होती। मोक्ष का मार्ग तो जाने दो, मगर जीवन जीना तो आना चाहिए न? बात ही समझनी है कि इस रास्ते पर ऐसा है और इस रास्ते पर ऐसा है। फिर तय करना कि किस राह जाना? समझ में नहीं आये तो चौराहे पर 'दादा' से पूछ लेना, तब 'दादा' तुम्हें दिखाएँगे कि ये तीन रास्ते जोख़िमवाले हैं और यह रास्ता बिना जोखिमवाला है, उस राह हमारे आशीर्वाद लेकर चलना है। शादी-शुदा को लगे कि हम तो फँस गये उलटे ! कुंवारों को लगता है कि ये लोग मज़े कर रहे हैं! इन दोनों के बीच का अंतर कौन दूर करेगा? और इस दुनिया में ब्याहे बगैर चले ऐसा भी नहीं है ! तब तो फिर शादी कर के दुःखी किस लिए होना? ये लोग दुःखी नहीं होते, वे तो एक्सपीरियन्स (अनुभव) ले रहे हैं। संसार सही है कि गलत, सुख है या नहीं? यह सार निकालने के लिए संसार है। आपने निकाला कुछ हिसाब अपने बहीखाते का ? सारा संसार कोल्हू के समान है। पुरुष बैल की जगह पर है और स्त्रियाँ तेली की जगह पर वहाँ तेली गाये और यहाँ स्त्री गाये ! और बैल आँख पर ढक्कन लगाये तान में ही चलता रहता है! गोल-गोल घूमता रहता है। ऐसे ही सारा दिन यह बाहर काम करे और समझे कि काशी पहुँच गए होंगे! और पट्टी खोलकर देखे तो भाईसाहब वहीं केवहीं ! फिर उस बैल को क्या करता है तेली? फिर थोड़ी खली बैल को खिलाये तो बैल खुश होकर फिर से शुरू हो जाता है। वैसे इसमें औरत भेलपुरी खिलाये कि भाई आराम से खाकर वापिस दौड़ने लगता है! पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार बाकी यहाँ तो दिन कैसे गुज़ारें यह भी मुश्किल हो गया है। पति आकर कहेगा कि, 'मेरे हार्ट में दर्द है।' लड़का आकर कहेगा कि 'मैं फेल हुआ।' पति के हार्ट में दर्द हो तब पत्नी को विचार आता है कि 'हार्ट फेल' हो गया तो क्या होगा, सभी तरह के विचार घेर लेते हैं और चैन नहीं लेने देते। ८८ ब्याहने की क़ीमत कब होती? लाखों लोगों में से एकाध आदमी को ब्याहने को मिलता हो तब यह तो सभी ब्याहते हैं उसमें नया क्या? स्त्री-पुरुष का ( शादी के बाद) व्यवहार कैसे करना, इसका तो बहुत बड़ा कॉलेज करने जैसा है। यह तो इस कॉलेज में पढ़े बिना ब्याह लेते हैं । एक बार अपमान हो, तो अपमान सहन करने में हर्ज नहीं, पर साथ ही अपमान को लक्ष्य में रखने की ज़रूरत है कि क्या अपमान के लिए जीवन है? अपमान का हर्ज नहीं, पर मान की भी ज़रूरत नहीं और अपमान की भी ज़रूरत नहीं है। लेकिन क्या हमारा जीवन अपमान के लिए है? इतना तो लक्ष्य में होना चाहिए न ? बीवी रूठी हुई हो तब तक भगवान को याद करता है और बीवी बात करने आई तब भाई वापिस लड़ने के लिए तैयार! फिर भगवान और दूसरा सब कुछ एक ओर ! कैसी उलझन ! क्या ऐसे दुःख मिट जानेवाले हैं? संसार यानी क्या? जंजाल। यह शरीर मिला है, वह भी जंजाल है! जंजाल का भी कहीं शौक़ होता होगा? इसके प्रति रूचि रहती है यह भी एक आश्चर्य है न ! मछली का जाल अलग और यह जाल अलग! मछली का जाल काट कर निकल सकते हैं पर इस संसार रुपी जाल में से निकल ही नहीं सकते। अंत में अर्थी उठे तभी निकल सकते हैं! 'ज्ञानीपुरुष' इस संसार जाल से निकलने का रास्ता दिखाते हैं, मोक्षमार्ग दिखाते हैं और सही राह पर ला देते हैं और हमें लगता है कि हम इस जंजालो से मुक्त हुए!

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