Book Title: Pati Patni Ka Divya Vyvahaar
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 58
________________ पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार १०१ जितने जितने पुरुष मजबूत मन के हैं, उनकी स्त्री तो बिलकुल उनके कहे अनुसार रहती है। उसके (पति या पत्नी) साथ विषय बंद करने के सिवा और कोई उपाय ही नहीं। क्योंकि इस संसार में राग-द्वेष का मूल कारण ही विषय है। मौलिक कारण यही है। यहाँ से ही सभी राग-द्वेष जन्मे हैं। संसार सारा यहाँ से ही खड़ा हुआ है। इसलिए संसार बंद करना हो तो यहाँ से ही विषय बंद कर देना पड़े। जिसे क्लेश नहीं करना, जो क्लेश का पक्ष नहीं लेता, उसे क्लेश होता है, पर धीरे-धीरे बहुत कम होता जाता है। ये तो जो क्लेश करना ही चाहिए ऐसा मानते हैं, तब तक क्लेश ज्यादा होगा। क्लेश के पक्ष में हमें नहीं होना चाहिए। क्लेश करना ही नहीं है ऐसा जिसका निश्चय है, उसे क्लेश कम से कम होता है। और जहाँ क्लेश है वहाँ भगवान नहीं रहते! १०२ पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार 'उसने मुझे भोग लिया।' और यहाँ पर (इस ज्ञान मिलने के बाद) वे निकाल करते हैं, फिर भी वह डिस्चार्ज (निकाली) किच-किच तो रहती ही है। हमें तो वह किच-किच भी नहीं थी, ऐसा किसी प्रकार का मतभेद नहीं था। विज्ञान तो देखो! संसार के साथ झगड़े बंद हो जाएँ। पत्नी के साथ तो नहीं झगड़े, लेकिन सारे संसार के साथ भी झगड़े बंद हो जाएँ। यह विज्ञान ही ऐसा है और झगड़े बंद हुए अर्थात् मुक्त हुआ। रहस्य, ऋणानुबंध के... शादी तो वाकई बंधन है। भैंस को बाडे में बंद करें ऐसी दशा होती है। इस फंदे में नहीं फँसे वह उत्तम। फंसने के बाद भी निकल जाएँ तो बहुत उत्तम। वर्ना आखिर फल चखने के बाद निकल जाना चाहिए। आत्मा किसी का पति, स्त्री या पुरुष या किसी का लड़का हो नहीं सकता, केवल सभी कर्म पूरे हो रहे हैं! आत्मा में तो कुछ भी परिवर्तन नहीं होता। आत्मा तो आत्मा ही है, परमात्मा ही है। ये तो हमने मान लिया कि यह हमारी स्त्री (पत्नी)। डबल बेड का सिस्टम बंद करो और सिंगल बेड का सिस्टम रखो। अब तो सभी कहते हैं, 'डबल बेड बनाइए, डबल बेड....' पहले तो हिन्दुस्तान में कोई मनुष्य ऐसे सोता नहीं था, कोई भी क्षत्रिय नहीं। क्षत्रिय तो बहुत सख्त नियमवाले होते हैं लेकिन वैश्य भी नहीं। ब्राह्मण भी इस प्रकार नहीं सोते, एक भी मनुष्य नहीं! देखिए काल कैसा विचित्र आया है! यह चिड़िया सुंदर घोंसला बनाती है, उसे कौन सिखाने गया था? यह संसार चलाना तो अपने आप आए ऐसा है। हाँ, स्वरूप ज्ञान प्राप्त करने के लिए पुरुषार्थ करने की आवश्यकता है। संसार चलाने के लिए कुछ भी करने की ज़रूरत नहीं है। ये मनुष्य अकेले ही ज़रूरत से ज्यादा अक्लमंद हैं। इन पशु-पक्षियों को क्या बीवी-बच्चे नहीं हैं? उनकी शादी रचानी पड़ती है? यह तो मनुष्यों को ही बीवी-बच्चे हुए हैं, मनुष्य ही शादी रचाने में लगे हैं। जब से हीराबा के साथ मेरा विषय बंद हुआ, तब से मैं उनको 'हीराबा' कहता हूँ। तत्पश्चात् हमें कोई खास मुश्किल नहीं आई। पहले जो थोड़ी-बहुत नोकझोंक होती थी वह विषय के संग के कारण। वह तोतामस्ती होती थी। लोग समझें कि तोते ने तोती को मारना शुरू किया! मगर हो तोतामस्ती। लेकिन जब तक विषय का डंक है, तब तक यह सब नहीं जाता। वह डंक निकले तभी जाएगा। हमारा निजी अनुभव बताते हैं। यह ज्ञान है उसको लेकर ठीक है वर्ना ज्ञान नहीं हो तो डंक मारते ही रहते हैं। उस समय तो अहंकार था न। उसमें एक हिस्सा भोग अहंकार का होता है कि उसने मुझे भोग लिया। और पत्नी कहेगी, ये गाय-भैंस भी ब्याहते हैं। उन्हें भी बच्चे होते हैं। लेकिन है वहाँ पति का रिश्ता? वे भी ससुर हुए होते हैं, सास हुई होती है, लेकिन वे बुद्धिमानों की तरह कुछ व्यवस्था खड़ी करते हैं? कोई ऐसा कहता है कि मैं इसका ससुर हूँ? फिर भी हमारी तरह ही सारा व्यवहार है न?

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