Book Title: Pati Patni Ka Divya Vyvahaar
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 56
________________ पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार ९७ बाद में मित्राचारी से रहें। फिर दुःखदायी नहीं होगा। यह तो सुख खोजते हैं इसलिए ऐसा ही है न! दावा दायर करते हैं न ! ऋषिमुनि बहुत अलग तरह के थे। एक पत्नीव्रत का पालन करोगे न? यदि कहो, 'पालन करूँगा' तब तुम्हारा मोक्ष है और अगर दूसरी स्त्री का जरा भी विचार आया तो मोक्ष गया, क्योंकि वह बिना हक़ का है। हक़ का होगा वहाँ मोक्ष और बिना हक़ का वहाँ पशुता । विषय की लिमिट (मर्यादा) होनी चाहिए। स्त्री-पुरुष का विषय कहाँ तक होना चाहिए? परस्त्री नहीं होनी चाहिए और परपुरुष नहीं होना चाहिए। और यदि उसका विचार भी आए तब उसे प्रतिक्रमण से धो देना चाहिए। बड़े से बड़ा जोखिम है तो इतना ही, परस्त्री और परपुरुष ! खुद की स्त्री जोखिम नहीं है। अब हमारी इसमें कहीं कोई गलती है? क्या हम डाँटते हैं किसी प्रकार ? इसमें कोई गुनाह है? यह हमारी सायन्टिफिक (वैज्ञानिक) खोज है! वर्ना साधुओं को यहाँ तक कहा गया है कि स्त्री की काष्ठ की प्रतिमा हो उसकी ओर भी मत देखना । स्त्री बैठी हो उस जगह बैठना नहीं। पर मैंने ऐसा-वैसा बखेड़ा नहीं किया है न? इस काल में एक पत्नीव्रत को हम ब्रह्मचर्य कहते हैं। और तीर्थंकर भगवान के समय में जो ब्रह्मचर्य का फल मिलता था, वही फल प्राप्त होगा, उसकी हम गारन्टी देते हैं। प्रश्नकर्ता: एक पत्नीव्रत कहा वह सूक्ष्म से भी या केवल स्थूल ? मन तो जाए ऐसा है न? दादाश्री : सूक्ष्म से भी होना चाहिए और यदि मन जाए तब मन से अलग रहना चाहिए। और उनके प्रतिक्रमण करते रहना पड़ेगा। मोक्ष में जाने की लिमिट क्या? एक पत्नीव्रत और एक पतिव्रत । अगर तू संसारी है तब तेरे हक़ का विषय भोगना । लेकिन बिना हक़ का विषय तो भोगना ही मत। क्योंकि उसका फल भयंकर है। पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार पत्नी को छोड़कर दूसरी जगह विषय भोग होगा तब वह स्त्री जहाँ जाएगी वहाँ उसे जन्म लेना पड़ेगा। वह अधोगति में जाए तो उसे भी वहाँ जाना होगा। आजकल बाहर तो सभी जगह ऐसा ही हो रहा है। कहाँ जन्म होगा इसका ठिकाना ही नहीं! बिना हक़ के विषय जिन्होंने भोगे उन्हें तो भयंकर यातनाएँ भोगनी पड़ेंगी। एकाध जन्म में उनकी बेटी भी चरित्रहीन होती है। नियम ऐसा है कि जिसके साथ बिना हक़ के विषय भोगे हों वही फिर माँ या बेटी बनकर आती है। बिना हक़ का लिया तब से मनुष्यपन चला जाता है। बिना हक़ का विषय तो भयंकर दोष कहलाता है। खुद दूसरों को भोगें तब खुद की बेटियों को लोग भोगते हैं। लेकिन उसकी चिंता ही नहीं है न! ९८ बिना हक़ के विषय में सदैव कषाय होते हैं और ऐसे कषाय हों तो नर्क में जाना पड़ता है। पर यह लोगों को मालूम नहीं है। इसलिए फिर डरते नहीं, किसी प्रकार का भय भी नहीं होता। इस जन्म में मनुष्य जीवन तो पिछले जन्म में अच्छा किया उसका परिणाम है। विषय की उत्पति आसक्ति से होती है और फिर उसमें से विकर्षण होता है। विकर्षण होता है इसलिए बैर बंधता है और बैर के फाउन्डेशन ( बुनियाद) पर यह जगत खड़ा हुआ है। लक्ष्मी की वजह से बैर बंधता है, अहंकार के कारण बैर बंधता है, लेकिन विषय का बैर बहुत ज़हरीला होता है। विषय में से पैदा हुआ चरित्रमोह, ज्ञान आदि सभी को उड़ा देता है। अर्थात् आज तक विषय के कारण ही सब रुका हुआ है। मूल विषय है और उसमें से लक्ष्मी पर राग हुआ और उसका अहंकार है। अर्थात् यदि मूल विषय चला जाए, तब सब चला जाए। प्रश्नकर्ता: तब बीज को सेकना आना चाहिए, मगर उसे किस प्रकार सेकें? दादाश्री : वह तो अपने इस प्रतिक्रमण से, आलोचना, प्रतिक्रमण - प्रत्याख्यान से।

Loading...

Page Navigation
1 ... 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65