Book Title: Pati Patni Ka Divya Vyvahaar
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 62
________________ पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार १०९ दादाश्री : हमें दूसरा शौक़ करना। हमारे यहाँ दूसरी बहुत-सी चीजें हैं। शौक़ बदल देना। राई मेथी के तड़केवाला नहीं भाता हो तो दालचीनी और काली मीर्च का तड़का दिलवाना ताकि अच्छा लगे। पीज्जा में तो क्या खाने जैसा है? व्यवस्था करें तो सारा जीवन अच्छी तरह व्यतीत हो और वे कुछ आधा घण्टा भगवान की भक्ति करें तो काम ढंग से चले। तुझे तो ज्ञान प्राप्त हो गया इसलिए अब तू तो समझदार हो गया। लेकिन दूसरों को ज्ञान नहीं मिला हो, उनको कुछ भक्ति करनी चाहिए न ! तेरा तो सब ठीक से चलने लगा न? यह अक्रम विज्ञान व्यवहार को छेड़ता नहीं है। प्रत्येक ज्ञान, व्यवहार को दुतकारता है। यह विज्ञान व्यवहार को किचित् मात्र दुतकारता नहीं है और अपनी 'रियालीटी' में संपूर्ण रहकर व्यवहार को दुतकारता नहीं है । व्यवहार को दुतकारे नहीं वही सैद्धांतिक वस्तु होती है। सैद्धांतिक वस्तु किसे कहते हैं कि जिसका कभी भी असैद्धांतिकता में परिणामन न हो वह सिद्धांत। कोई ऐसा कोना नहीं है जहाँ असिद्धांत हो। अर्थात् यह 'रियल साईंस' (वास्तविक विज्ञान) है, 'कम्पलीट साईंस' (पूर्णतया विज्ञान) है। व्यवहार को किचिंत्मात्र नहीं दुतकारता ! किसी को ज़रा-सा भी दुःख नहीं हो, वह आखरी 'लाइट' (प्रकाश) है। विरोधी को भी शांति हो। हमारा विरोधी हो पर ऐसा कहे कि 'भाई, इनका और मेरा मतभेद है पर उनके प्रति मुझे भाव है, आदर है' ऐसा कहे आखिर ! हमेशा विरोध तो रहनेवाला ही है। ३६० डिग्री का और ३५६ डिग्री का भी विरोध होता ही है। इस प्रकार विरोध तो होता ही है। एक ही डिग्री पर सभी मनुष्य नहीं आ सकते। एक ही विचार श्रेणी पर सभी मनुष्य नहीं आ सकते। क्योंकि मनुष्य की विचार श्रेणी की चौदह लाख योनियाँ हैं । बोलिए, अपने को कितने 'एडजस्ट' हो सकते हैं? कुछ ही 'एडजस्ट' हो सकते हैं, सभी नहीं हो सकतें। घर में तो सुन्दर व्यवहार कर देना चाहिए। 'वाइफ' के मन में ऐसा ११० पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार लगे कि ऐसा (अच्छा) पति कभी नहीं मिलेगा और पति के मन में ऐसा लगे कि ऐसी (अच्छी) 'वाइफ' भी कभी भी नहीं मिलेगी ! ऐसा हिसाब ला दें तब हम सच्चे ! प्रश्नकर्ता: अध्यात्म में तो आपकी बात का कहना ही क्या पर व्यवहार में भी आपकी बातें 'टॉप' (श्रेष्ठ) हैं ! दादाश्री : ऐसा है न, कि व्यवहार में 'टॉप' का समझे बिना कोई मोक्ष में नहीं गया है। चाहे बहुत ही ऊँचा आत्मज्ञान क्यूं न हो लेकिन व्यवहार को समझे बगैर कोई मोक्ष में नहीं गया है। क्योंकि व्यवहार छोड़नेवाला है न? व्यवहार आपको नहीं छोड़ेगा तो आप क्या करेंगे? आप 'शुद्धात्मा' ही हैं लेकिन व्यवहार आपको छोड़ें तब न? आप व्यवहार को उलझाते रहते हो । उसका झटपट हल ला दो न ! - जय सच्चिदानंद पति-पत्नी को एक दूसरे के दोष नज़र आए तब दादाश्री द्वारा सूचित प्रतिक्रमण विधि प्रत्यक्ष दादा भगवान की साक्षी में, फाइल नं. दो के मन-वचनकाया के योग, भावकर्म-द्रव्यकर्म-नोकर्म से भिन्न ऐसे हे शुद्धात्मा भगवान, | आपकी साक्षी में, आज दिन तक मुझसे जो जो ★ ★ दोष हुए हैं, उसके लिए क्षमा माँगता हूँ । हृदयपूर्वक बहुत पश्चाताप करता हूँ । आलोचना| प्रतिक्रमण - प्रत्याख्यान करता हूँ। मुझे क्षमा करो, क्षमा करो, क्षमा करो। और फिर से ऐसे दोष कभी भी नहीं करूँ, ऐसा दृढ़ निश्चय करता हूँ। हे दादा भगवान ! मुझे ऐसा कोई भी दोष न करने की परम शक्ति दो शक्ति दो, शक्ति दो। ★★ विषय कषाय आदि से किसी भी प्रकार का दुःख पहुँचाया हो, उन दोषों को मन में याद करें। ܀܀܀

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