Book Title: Pati Patni Ka Divya Vyvahaar
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 11
________________ पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार हमारे लिए हितकारी क्या है इतना तो सोचना चाहिए न ! ब्याहे उस दिन का आनंद याद करें, वह हितकारी या विधुर हुए, उस दिन का शौक़ याद करें, वह हितकारी ? हमें तो ब्याह के समय ही विधुर होने का विचार आया था ! तब व्याहते समय नया साफ़ा बाँधा था। बाद में साफा खिसका तो अंदर विचार आया कि यह ब्याहने तो लगे हैं, दोनों का मिलन हो रहा है लेकिन दो में से एक को वैधव्य आएगा ही! प्रश्नकर्ता उतनी उम्र में आपको ऐसे विचार आए थे? : दादाश्री : हाँ, क्या ऐसा विचार नहीं आएगा? एक पहिया तो टूटेगा न? शादी हुई है तो वैधव्य आए बगैर नहीं रहेगा। प्रश्नकर्ता: पर व्याहते समय तो सिर पर शादी का जोश सवार होता है, कितना मोह होता है! उसमें ऐसा वैराग्य का विचार कहाँ आता है ? दादाश्री : पर उस समय विचार आया कि विवाह हुआ और बाद में वैधव्य तो आएगा। दो में से एक को तो वैधव्य आएगा, या तो उनको आएगा या तो मुझे आएगा। सभी की मौजूदगी में, सूर्यनारायण की साक्षी में, पंडितजी की साक्षी में शादी की। उस समय पंडितजी ने कहा था कि 'समय वर्ते सावधान', तब तुझे सावधान होना भी नहीं आता? समय के अनुसार सावधान होना चाहिए। पंडितजी कहते हैं कि 'समय वर्ते सावधान', तब पंडितजी समझता है, मगर शादी करनेवाला क्या समझेगा? सावधान का अर्थ क्या है? बीवी उग्र हो जाए तब तू ठंडा हो जाना, सावधान हो जाना। 'समय वर्ते सावधान' यानी जैसा समय आए वैसा होकर सावधान रहने की ज़रूरत होती है। तभी संसार में शादी करनी चाहिए। वह उछले और हम भी उछलने लगें तो असावधानी कहलाएगी। वह उछले तब हमें शांत रहना है। सावधान रहने की ज़रूरत नहीं है? हम तो सावधान रहे थे। दरार पड़ने नहीं दी। दरार होने लगे तो तुरंत वेल्डिंग कर देते थे । ८ पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार प्रश्नकर्ता: क्लेश होने का मूल कारण क्या है? दादाश्री : भयंकर अज्ञानता ! उसे संसार में जीना नहीं आता, लड़के का बाप होना नहीं आता, पत्नी का पति होना नहीं आता। जीवन जीने की कला ही नहीं आती। ये तो सुख होने पर भी सुख नहीं भोग सकते। प्रश्नकर्ता: पर क्लेश पैदा होने का कारण स्वभाव मेल नहीं खाता, इसलिए? दादाश्री : अज्ञानता है इसलिए संसार का अर्थ ही यही कि किसी का स्वभाव किसी से मिलता ही नहीं। यह ज्ञान प्राप्त हो उसके पास एक ही रास्ता है, 'एडजस्ट एवरीव्हेयर'। जहाँ क्लेश होता है वहाँ भगवान का वास नहीं रहता। इसलिए हम लोग ही जैसे भगवान से कहते हैं, 'साहब, आप मंदिर में रहना, मेरे घर मत आना। हम मंदिर ज्यादा बनवायेंगे पर हमारे घर मत आना।' जहाँ क्लेश नहीं हो वहाँ भगवान का निवास निश्चित है, इसकी मैं तुम्हें 'गारन्टी' (जमानत ) देता हूँ। क्लेश हुआ कि भगवान चले जाते हैं। और भगवान चले जाएँ तो लोग हमें क्या कहेंगे, धंधे में कुछ बरकत नहीं रही। अरे, भगवान गए इस कारण बरकत नहीं आती। भगवान अगर रहें तो धंधे में अच्छी बरकत आती है। तुम्हें क्लेश पसंद है ? प्रश्नकर्ता: नहीं। दादाश्री : फिर भी हो जाता है न? प्रश्नकर्ता कभी कभी । : दादाश्री : वह तो दिवाली भी कभी कभी ही आती है न, हर रोज़ थोड़े आएगी? प्रश्नकर्ता: बाद में पंद्रह मिनट में शान्त हो जाता है, क्लेश बंद हो जाता है। दादाश्री : अपने में से क्लेश निकाल दो। जिनके यहाँ घर में क्लेश

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