Book Title: Pati Patni Ka Divya Vyvahaar
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 22
________________ पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार उसकी मूंछे निकलें तब सवार होगी। पर क्या मूंछे निकलनेवाली है? कितनी भी समझदार हो फिर भी मूंछे निकलेंगी? बाक़ी एक जन्म तो तुम्हारा हिसाब है उतना चुकाना होगा। दूसरा लम्बा-लम्बा हिसाब होनेवाला ही नहीं। एक भव का हिसाब तो निश्चित ही है, तब फिर हम क्यों न शांत चित होकर रहें? कछ लोग तो मल में ही क्लेशपर्ण स्वभाव के होते हैं। पर कछ लोग तो ऐसे पक्के होते हैं कि बाहर झगड़ा कर आएँ, पर घर में बीवी के साथ झगड़ा नहीं करते। पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार अच्छा कमायें, ऐसी भावना भी थी। और वह दु:ख मुक्त होकर सुखी होवे, ऐसी भावना! मैंने कहा, 'क्यों नहीं आऊँगा? तेरे यहाँ पहले आऊँगा।' तब कहने लगा, 'मेरे यहाँ तो एक ही रूम है, आपको कहाँ बिठाऊँगा?' तब मैंने कहा, 'मैं कहीं भी बैलूंगा, मुझे तो एक कुर्सी ही चाहिए, नहीं तो कुर्सी नहीं होगी तब भी मुझे चलेगा। तेरी इच्छा है इसलिए मैं ज़रूर आऊँगा।' फिर मैं तो गया। हमारा कॉन्ट्रेक्ट का व्यवसाय, इसलिए हम उसके घर भी गये, वहाँ चाय भी पी। हमारा किसी से भेदभाव नहीं होता। मैंने कहा, 'अरे, यह एक ही रूम बड़ा है और दूसरा तो संडास के बराबर ही छोटा है।' तब कहे, 'साहब, क्या करे? हम गरीब के लिए इतना बहुत है।' मैंने कहा, 'तेरी वाइफ कहाँ सोती हैं?' तब कहा, 'इसी रूम में, ये बेडरूम (शयनकक्ष) कहो, ये डाईनींग रूम (भोजन कक्ष) कहो, सब ये ही।' मैंने कहा 'अहमद मियाँ, औरत के साथ कुछ झगड़ावगड़ा होता नहीं है क्या?' 'यह क्या बोले? कभी नहीं होता। मैं ऐसा मर्ख आदमी नहीं।' 'मतभेद?' तब कहे. 'क्या कहते हो? नहीं. मतभेद औरत के साथ नहीं। बीवी के साथ मेरी तकरार नहीं होती।' मैंने कहा, 'कभी बीवी गुस्सा करे तब?' तो कहने लगा, 'प्यारी, वहाँ साहब परेशान करता है और ऊपर से तू परेशान करेगी तो मेरा क्या होगा? तो चुप हो जाती है।' एक दिन हम एक मियाँभाई के वहाँ गए थे तब मियाँभाई बीवी को झूला झुला रहे थे! इस पर मैंने पूछा कि, 'आप ऐसा करते हो इससे वह आप पर सवार नहीं हो जाती?' तब उसने कहा कि 'वह क्या सवार होगी, उसके पास कुछ हथियार तो नहीं, कुछ भी नहीं।' मैंने कहा कि, 'हमें तो डर लगता है कि बीवी सवार हो जाएगी तो क्या होगा? इस लिए हम झूला नहीं झुलाते।' तब मियाँभाई ने कहा कि 'यह झला झलाने की वजह आप जानते हो?' वह तो ऐसा हुआ कि १९४३-४४ में हमने गवर्मेन्ट काम का कॉन्ट्रेक्ट रखा था, उसमें चिनाई काम का लेबर कॉन्ट्रेक्ट था। उसने कॉन्ट्रेक्ट ले लिया था। उसका नाम अहमद मियाँ, वह बहुत दिनों से कहते थे कि, साहब मेरे घर आप आईए, मेरी झोपड़ी में आईए। झोंपड़ी कहता बेचारा। बातचीत में बड़े समझदार होते हैं, व्यवहार में अलग बात होगी या नहीं भी होगी, पर बातचीत में जहाँ स्वार्थ नहीं होता वहाँ अच्छा लगता है। वह अहमद मियाँ एक दिन कहने लगा, 'सेठजी, आज हमारे घर आप तशरीफ़ लायें। मेरे यहाँ पधारिए ताकि मेरे बीवी-बच्चे सभी को आनंद हो।' तब ज्ञान-बान तो नहीं था पर विचार बहुत सुन्दर, सभी के प्रति अच्छी भावना थी। अपने यहाँ से कमाता हो तो उसके लिए, कैसे मैंने कहा, 'मतभेद नहीं होता इसलिए झंझट नहीं न?' तो बोला, "नहीं, मतभेद होगा तो वह कहाँ सोयेगी और मैं कहाँ सोऊँगा? यहाँ दोतीन मंज़िलें हों तो मैं जानूँ कि तीसरी मंजिल पर चला जाऊँ। पर यहाँ तो इसी रूम में सोना है। मैं इस करवट सो जाऊँ और वह उस करवट सो जाए फिर क्या मज़ा आएगा? सारी रात नींद नहीं आएगी। पर अब सेठजी मैं कहाँ जाऊँ? इसलिए इस बीवी को कभी दु:ख नहीं देता। बीवी मुझे पीटे तब भी दुःख नहीं दूंगा। मैं बाहर सब के साथ झगड़ा करके आऊँगा, पर बीवी के साथ 'क्लियर' रखने का। वाइफ को कुछ परेशान

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