Book Title: Pati Patni Ka Divya Vyvahaar
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 29
________________ पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार के लिए क्या करते हैं? वह भी बिना समझ, मूर्छा में! निर्मल बुद्धिमान के यहाँ कपट और दगा नहीं होते। यह तो 'फलिश'(मुर्ख) मनुष्य के यहाँ फिलहाल दगा और कपट होते हैं। कलियुग में 'फूलिश' ही जमा हुए हैं न! लोगों ने कहा हो कि यह नालायक आदमी है. फिर भी हमें उसको लायक कहना। क्योंकि नालायक नहीं भी हो और उसे नालायक कहोगे तो भारी गुनाह होगा। सती हो उसे यदि 'वैश्या' कह दिया तो भयंकर गुनाह है! उसके परिणाम स्वरूप कितने ही जन्मों तक भुगतना होगा। इसलिए किसी के भी चारित्र के बारे में मत बोलना। क्योंकि वह गलत होगा तब? लोगों के कहने पर हम भी कहने लगें तब उसमें हमारी क्या क़ीमत रह गई? हम तो ऐसा कभी भी किसी के बारे में बोलते नहीं, और किसी को कहा भी नहीं, मैं तो हाथ ही नहीं डालन! वह जिम्मेवारी कौन लेगा? किसी के चरित्र के बारे शंका नहीं करनी चाहिए। उसमें भारी जोख़िम है। शंका तो हम कभी करते ही नहीं। हम क्यों जोखिम उठायें? एक आदमी को उसकी वाइफ पर शंका होती थी। उससे मैंने पूछा कि शंका किस कारण होती है? तूने देखा इसलिए शंका होती है? क्या तूने नहीं देखा था, तब नहीं हो रहा था? हमारे लोग तो पकड़ा जाए उसे 'चोर' कहते हैं। पर जो पकड़े नहीं गए वे सब भीतर से चोर ही हैं। पर यह तो पकड़ा गया उसे 'चोर' कहते हैं, अरे ! उसे क्यों चोर कहता है? वह तो ढीला है, छोटा चोर है इसलिए पकड़ा गया। बड़ा चोर पकड़ा जाता होगा? इसलिए जिसे पत्नी के चरित्र संबंधी शांति चाहिए, उसे तो बिलकुल काली बदरूप बीवी लानी चाहिए कि जिसका कोई खरीदार ही नहीं हो, कोई उसे पूछता भी न हो। और वह भी ऐसा कहे कि, 'मुझे कोई अपनानेवाला नहीं हैं, यह एक पति मिला उसने मुझे अपनाया है।' वह तुम्हें सिन्सियर (वफादार) रहेगी, पूरी सिन्सियर रहेगी। बाकी सुन्दर होगी उसे लोग भोगेंगे ही। सुन्दर हो, इसलिए लोगों की दृष्टि बिगड़ेगी ही। कोई सुन्दर पत्नी लाये तब हमें यही विचार आता है कि इसका क्या हाल होगा! काली दागवाली होगी तभी सेफसाइड (सलामती) रहेगी। पत्नी बहुत सुन्दर हुई तो वह भगवान को भूलेगा न! और पति स्वरूपवान होगा तब वह स्त्री भी भगवान भूल जाएगी। इसलिए प्रमाण से सब अच्छा। हमारे बुढ्ढे तो ऐसा कहते थे कि 'खेत रखना समतल और औरत मत रखना अति सुन्दर।' ये लोग तो कैसे हैं कि 'जहाँ होटल नजर आए वहाँ खाना खाते हैं।' (विजातीय व्यक्ति को देखते ही उस पर दृष्टि बिगाड़ते हैं।) इसलिए शंका करने जैसा जगत नहीं है। शंका ही दुःखदायिनी है। और ये लोग तो, वाइफ जरा देर से आए तब भी शंका करने लगते हैं। शंका करने जैसा नहीं है। ऋणानुबंध के बाहर कुछ भी होनेवाला नहीं है। वह घर आए तब समझाना लेकिन शंका मत करना। शंका तो अधिक बढ़ावा देती है। हाँ सावधान ज़रूर करना, पर किसी प्रकार की शंका मत करना। शंका करनेवाला मोक्ष खो देता है। इसलिए हमें अगर छुटकारा पाना हो, मोक्ष में जाना हो तो हमें शंका नहीं करनी चाहिए। कोई दूसरा आदमी तुम्हारी 'वाइफ' के गले में हाथ डाल कर घूमता हो और तुम्हारे देखने में आया, तब क्या हम जहर खा लें? किसी भी बात में शंका हो, तब हमें जागृत रहना है मगर दूसरों पर शंका नहीं रखनी है। शंका हमें मार डालती है। उसका तो जो होना होगा वह होगा पर हमें तो वह शंका ही मार डालेगी। क्योंकि शंका तो मनुष्य की मृत्यु हो तब तक उसे छोड़ती नहीं। शंका हो तो मनुष्य का प्रभाव बढ़ता है क्या? मनुष्य मुर्दे की तरह जी रहा हो ऐसा लगेगा। पतिपने के गुनाह प्रश्नकर्ता : कुछ लोग स्त्री से ऊबकर घर से भाग जाते हैं, वह क्या है?

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