Book Title: Pati Patni Ka Divya Vyvahaar
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 16
________________ पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार तुम वैसे करते हो। दोनों यूँ हाथ हिलाते हैं तो लोग समझते हैं कि अहोहो! इन दोनों में इतनी एकता! यह इनका 'कोर्पोरेशन' (संगठन) अभेद है, ऐसा हमें लगता है। और बाद में घर में जाकर दोनों झगड़ने लगें तब क्या कहेंगे? घर में वे दोनों झगड़ते हैं कि नहीं झगड़ते? कभी तो झगड़ते हो न? वह कॉर्पोरेशन (पति-पत्नी) अन्दर-अन्दर जब झगड़ते हैं न, 'तू ऐसी और तुम वैसे, तू ऐसी और तुम वैसे...' फिर घर में लड़ाई शुरू, तब तो कहता है, 'तू चली जा, यहाँ से। अपने घर चली जा। मझे तेरी ज़रूरत ही नहीं है।' अब यह नासमझी नहीं है क्या? आपको क्या लगता है? अभेदता टूट गई और भेद उत्पन्न हुआ। अर्थात् वाइफ के साथ भी 'तू तू, मैं मैं' हो जाए। 'तू ऐसी है और तू वैसी है !' तब वह कहेगी, 'तुम कहाँ सीधे हो?' अर्थात् घर में भी 'तू तू, मैं मैं' हो जाता है। तो ऐसे ही चिल्लाते हैं। जाने दो, पति चुनने में मेरी भूल हो गई लगती है। ऐसा पति कहाँ से मिला?' पर अब क्या करें? खूटे से बँधे हैं ! विदेश में 'मेरी' हो तो दूसरे दिन चली जाए, पर इन्डियन (भारतीय) किस तरह चली जाए? खूटी से बँधी। जहाँ झगड़ा ही नहीं हो, ऐसी जगह झगड़ा करें तो फिर झगड़ा करने जैसी जगह पर तो मार ही डालें ये लोग! अरे, अगर पास-पास में बैग रखे हों तब भी कहेगा, 'उठा ले तू अपना बैग यहाँ से।' अरे मुए, शादी-शुदा है, शादी की है, एक हो कि नहीं? और फिर लिखे क्या? अर्धांगिनी लिखता है। अरे! किस जाति का है तू? हाँ, तब अर्धांगिनी क्यों लिखता हैं? उसमें आधा अंग नहीं बैग में सामान रखते वक्त? यह किसका मज़ाक हो रहा है, पुरुषों का या स्त्रियों का? ऐसा नहीं कहते, अर्धांगिनी नहीं कहते? प्रश्नकर्ता: कहते हैं न! जो पहले एक थे, 'हम दोनों एक हैं, हम ऐसे हैं, हम वैसे हैं। यह हमारा ही है। उसका 'मैं और तू' हुआ! इसलिए खींचातानी होती है। वह खींचातानी फिर कहाँ पहुँचती है? आखिर हल्दीघाटी की लड़ाई शुरू हो जाती है। सर्वनाश को निमंत्रित करने का साधन, यह खींचातानी ! इसलिए खींचातानी तो किसी के साथ मत होने देना। रोजाना 'मेरी वाइफ, मेरी वाइफ' कहता है और एक दिन उसने अपने कपडे पति के बैग में रख दिये तब दूसरे दिन पति क्या कहेगा? 'मेरे बैग में तूने साड़ियाँ रखी ही क्यों?' ये आबरूदार की औलाद! उसकी साडियाँ इसे खा गई! लेकिन उनका अलग अस्तित्व है न, इसलिए वाइफ और हसबैंड, वे तो बिज़नेस (रिश्ते) की वजह से एक हुए, कॉन्ट्रेक्ट (करार) है यह । वह अलग अस्तित्व क्या मिट जाता है? अस्तित्व अलग ही रहता है। 'मेरे सन्दूक में साड़ियाँ क्यों रखती हो' ऐसा कहते हैं या नहीं कहते? प्रश्नकर्ता : हाँ, कहते हैं। दादाश्री : यह तो चिल्लाता है कि मेरे बैग में तेरी साड़ियाँ रखीं ही क्यों? इस पर पत्नी कहती है, 'किसी दिन उसके बैग में कुछ रखा दादाश्री : और ऐसे मुकर जाएँ फिर। स्त्रियाँ दखल नहीं करती। स्त्रियों के बैग में यदि हमारे कपड़े रखे हों तो वह दख़ल नहीं करती। और यहाँ तो भारी अहंकार ! बिच्छू की तरह यों डंक मारे। जरा छूए तो मार दे तुरन्त। यह मेरी आपबीती कहता हूँ ताकि आप सबकी समझ में आए कि इन पर ऐसी बीती होगी। आप ऐसे ही सीधे कबूल नहीं करोगे, पर मैं कबूल कर लेता हूँ। प्रश्नकर्ता : आप बोले इसलिए हमें अपना सब याद आ जाता है और कबूल कर लेते हैं। दादाश्री : नहीं, तुम क़बल नहीं करोगे लेकिन मैं क़बूल कर लँगा कि मुझ पर बीती है। आपबीती नहीं बीती? अरे! डंक मारे तब कैसा मारता है, कि 'तू अपने घर चली जा' कहता है। चली जाएगी तब तेरी क्या दशा होगी? वह तो कर्म से बंधी है। कहाँ जाए बेचारी? पर यह जो तू बोलता है वह व्यर्थ नहीं जाएगा। यह दाग़ उसके दिल में होगा,

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