Book Title: Pati Patni Ka Divya Vyvahaar Author(s): Dada Bhagwan Publisher: Mahavideh Foundation View full book textPage 5
________________ प्रस्तावना निगोद में से एकेन्द्रिय और एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक के उत्क्रमण और उसमें से मनुष्य का परिणमन हुआ तब से युगलिक स्त्री और पुरुष साथ में जन्मे, ब्याहे और निवृत हुए... ऐसे उदय में आया मनुष्य का पतिपत्नी का व्यवहार ! सत्युग, द्वापर और त्रेतायुग में प्राकृतिक सरलता के कारण पति-पत्नी के बीच जीवन में समस्या शायद ही आती थी। आज, इस कलिकाल में प्रतिदिन क्लेश, झगड़े, और मतभेद पति-पत्नी के बीच बहुधा हर जगह देखने में आते हैं। इसमें से बाहर निकल कर पति-पत्नी का आदर्श जीवन कैसे जी सकें, इसका मार्गदर्शन इस काल के अनुरूप किस शास्त्र में मिलेगा? अब क्या किया जाए? आज के लोगों की वर्तमान समस्याएँ और उनकी भाषा में ही उन समस्याओं के हल, इस काल के प्रकट ज्ञानीपुरुष ही दे सकते हैं। ऐसे प्रकट ज्ञानीपुरुष, परम पूज्य दादाश्री को उनकी ज्ञानावस्था के तीस वर्षों में पति-पत्नी के बीच हुए घर्षण के समाधान के लिए पूछे गए हजारों प्रश्नों में से संकलित कर यहाँ प्रस्तुत पुस्तक में प्रकाशित किए जा रहे हैं। पति-पत्नी के बीच की अनेकों जटिल समस्याओं के समाधान रूपी हृदयस्पर्शी और स्थायी समाधान करनेवाली वाणी यहाँ सज्ञ पाठक को उनके वैवाहिक जीवन में परस्पर देव-देवी जैसी दृष्टि निशंक ही उत्पन्न कर देगी, मात्र हृदयपूर्वक पढ़कर समझने से ही। शास्त्रों में गहन तत्त्वज्ञान मिलता है, पर वह शब्दों में ही मिलता है। उनसे आगे शास्त्र नहीं ले जा सकते। जो शब्द है, वह भाषाकीय दृष्टि से सीधे-सादे है किन्तु 'ज्ञानीपुरुष' का दर्शन निरावरण है, इसलिए उनके प्रत्येक वचन आशयपूर्ण, मार्मिक, मौलिक और सामनेवाले के व्यु पोइन्ट को एक्जैक्ट (यथार्थ) समझकर निकलने के कारण श्रोता के दर्शन को सुस्पष्ट खोल देते है और अधिक ऊंचाई पर ले जाते है। व्यवहारिक जीवन के पंक्चर को जोड़ना तो उसके एक्सपर्ट (निपुण) अनुभवी ही सिखा सकते हैं ! संपूर्ण आत्मज्ञानी दादाश्री, पत्नी के साथ आदर्श व्यवहार को पूर्ण अनुभव कर अनुभववाणी से समाधान करते हैं, जो प्रभावपूर्ण रीति से काम करता है। यह इस काल के अक्रम ज्ञानी की विश्व को बेजोड़ भेंट है, व्यवहार ज्ञान की बोधकला की! संपूज्य दादाश्री के पास कई पति पत्नी और यगल ने अपने दुःखमय जीवन की समस्याएँ प्रस्तुत की थीं; कभी अकेले में, तो कभी सार्वजनिक सत्संग में। ज्यादातर बातें अमरीका में हुई थीं, जहाँ फ्रीली, ओपनली (खुले आम, मुक्तता से) सभी निजी जीवन के बारे में बोलते थे। निमित्ताधीन परम पूज्य दादाश्री की अनुभव वाणी निकली, जिसका संकलन पढ़नेवाले प्रत्येक पति-पत्नी का मार्गदर्शन कर सकता है। कभी पति को उलाहना देते, तो कभी पत्नी को झकझोरते, जिस निमित्त को जो कहने की जरूरत हो उसे आरपार देखकर दादाश्री सार निकाल कर वचन बल से रोग निर्मूल करते थे। सुज्ञ पाठकों से निवेदन है कि वे गलत तरीके से अनर्थ न कर बैठे कि दादा ने तो स्त्रियों का ही दोष देखा है अथवा पतिपने को ही दोषित ठहराया है ! पति को पतिपना का दोष दिखाती वाणी और पत्नी को उसके प्राकृतिक दोषों को प्रकट करती वाणी दादाश्री के मुख से प्रवाहित हुई है। उसे सही अर्थ में ग्रहण कर स्वयं के शुद्धिकरण हेतु मनन, चिंतन करने की पाठकों से नम्र विनती है। - डॉ. नीरुबहन अमीनPage Navigation
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