Book Title: Parshwanath Charitra Author(s): Kashinath Jain Pt Publisher: Kashinath Jain Pt View full book textPage 4
________________ भूमिका विश्ववन्दनीय परम कृपालु श्री आदि जिनेश्वरकी असीम कृपासे आज हम अपने प्रेमी पाठकोंकी सेवामें यह ग्रन्थ-रत्न ले कर उपस्थित हो रहे हैं। प्रस्तुत ग्रन्थके मूल लेखक श्री उदयवीर गणि हैं, जिन्होंने संवत् १६५४ में इस ग्रन्थको गद्य संस्कृतमें लिखा है। यद्यपि हेमचन्द्रावार्य आदि अन्यान्य सात-आठ आचार्योंने संस्कृत और प्राकृत भाषामें 'पार्श्वनाथचरित्र' लिखे हैं, किन्तु संस्कृतके अल्पबोधि पाठक उनकी कृतिसे यथेष्ट लाभ नहीं उठा सकते थे, इसी उद्देशसे उक्त गणिजीने इस ग्रन्थकी रचना की है। और इसी ख़यालसे उन्होंने इस चरित्रको कथायें आदि दे कर बड़ा बना दिया है। समूचा ग्रन्थ एक प्रकारसे कथा मय है, किन्तु उन कथाओंमें जैन धर्मके बड़े-सेबड़े सिद्धान्त और गूढ़ तात्त्विक विषय गूथ कर मणि भौर काञ्चन संयोगको कहावतको चरितार्थ कर दी है । यह एक ऐसा ग्रन्थ है, जिसे पढ़कर हरएक पाठक वर्णनीय विषयके अतिरिक्त अन्यान्य महा पुरुषोंके चरित्र एवं धर्म तथा नीति-शास्त्रके गूढ तत्तव आसानीसे हृदयंगम कर सकता है। वर्तमान समयमें जो लोग कुछ पढ़ सकते हैं अथवा जिन्हें कुछ पढ़नेका शौक है, वे प्रायः उपन्यास पढ़ते पाये जाते हैं। उपन्यास-प्रेमियोंकी संख्या दिनोदिन बढ़ती जा रही है, किन्तुPage Navigation
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