Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०-ते कुर्वन्ति। ते सुन्वन्ति। ते चिन्वन्ति । अद्य श्वो विजनिष्यमाणा: पतिभिः सह शयान्तै (वासिष्ठगृह्यसूत्रम् १० ।२४)। जरन्त: । वेशन्तः।
आर्यभाषा: अर्थ-(अङ्गात्) अङ्ग से उत्तर (प्रत्ययस्य) प्रत्यय के अवयवभूत (झ:) झकार के स्थान में (अन्तः) अन्त आदेश होता है।
उदा०-ते कुर्वन्ति । वे सब करते हैं। ते सुन्वन्ति। वे सब अभिषव करते हैं। अभिषवरस निचोड़ना। ते चिन्वन्ति । वे चयन करते हैं। अद्य श्वो विजनिष्यमाणा: पतिभिः सह शयान्तै (वासिष्ठ गृह्यसूत्र १०।२४)। शयान्तै सोती हैं। जरन्त: । वृद्ध पुरुष अथवा भैंसा। वेशन्त: । छोटा तालाब।
सिद्धि-(१) कुर्वन्ति । कृ+लट् । कृ+ल। कृ+झि। कृ+उ+अन्ति। कर+उ+अन्ति। कुर्+व्+अन्ति। कुर्वन्ति।
यहां 'डुकृञ् करणे' (तना०उ०) धातु से लट्' प्रत्यय है। इस सूत्र से झि' प्रत्यय के झकार' को 'अन्त' आदेश होता है। तनादिकाभ्य: उ:' (३।११७९) से उ' विकरण-प्रत्यय और 'अत उत सार्वधातुके (६।४।११०) से कर्' के अकार को उकार आदेश होता है।
(२) सुन्वन्ति। पत्र अभिषवें (स्वा०3०) धातु से लट्' प्रत्यय और स्वादिभ्यः श्नः' (३।१।७३) से अनु' विकरण-प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है। ऐसे ही चित्र चयने' (स्वा०उ०) धातु से-चिन्वन्ति।
(३) शयान्तै। शी+लेट्। शी+आट्+ल। शी+आ+झ। शी+शप्+आ+अन्त। शे+o+आ+अन्ते। शय्+आ+अन्तै। शयान्तै।
यहां शी स्वप्ने (अदा०आ०) धातु से लिङगर्थे लेट्' (३।४।७) से लेट्' प्रत्यय है। लेटोऽडाटौं' (३।४।९४) से लेट्' को 'आट्' आगम, टित आत्मनेपदानां टेरे' (३।४।७९) से 'अन्त' के टि-भाग (अ) को एत्व और वैतोऽन्यत्र' (३।४।९६) से एकार को ऐकार आदेश होता है। शीङ: सार्वधातुके गुणः' (७।४।२१) से 'शीङ्' धातु को गुण होता है। 'अदिप्रभृतिभ्य: शप:' (२।४।७२) से 'शप्' का लुक होता है।
यहां लेटोऽडाटौं (३।४।९४) से लकार-अवस्था में 'आट' आगम होता है अत: झ' प्रत्यय झकारादि नहीं रहता है। इसलिये यहां प्रत्ययादीनाम्' (७।१।२) से 'आदि' की अनुवृत्ति नहीं की जाती है, केवल प्रत्यय' की अनुवृत्ति होती है। इससे प्रत्यय के अवयव झकार को अन्त आदेश होता है, ऐसा सूत्रार्थ किया जाता है।
(४) जरन्त: । जृ+झच् । जु+झ। जु+अन्त । ज+अन्त । जरन्त+सु । जरन्तः ।
यहां जृ वयोहानौ' (क्रया०प०) धातु से जृविशिभ्यां झच्' (उणा० ३ ।१२६) से झच्' प्रत्यय है। सूत्र-कार्य पूर्ववत् है।
(५) वेशन्तः । विश प्रवेशने (तु०प०) धातु से पूर्ववत्।
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