Book Title: Panchsutra Stabak
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 9
________________ डिसेम्बर २००७ बंधा । साणुबंधं च सुहकम्मं पगिट्ठ पगिट्ठभावज्जियं नियमफलयं सुपउत्ते वि व महागए सुहफले सिआ सुहपवत्तगे सिआ परमसुहसाहगे सिआ । तथा आसकलीक्रियते-आक्षिपिइं समीप थयें, परिपोष्यंते-परिपोषियें भावनें उपचयें करी, निर्माप्यंते-परिसमाप्ति पमाडीयें शुभकर्मना अनुबंधकुशलकर्मना अनुबंध ए भावः । सानुबंधं च पुनः शुभकर्म आत्यंतिकानुबंधापेक्ष अनुबंधसहित शुभकर्म प्रकृष्ट क० प्रधान प्रकृष्ट भावाजितं क० शुभभावें उपायुं नियमफलदं क० प्रकृष्टत्वे करीने नियमें फल देणहार छै । सुप्रयुक्त इव महागदः एकांतकल्याणः सुखफलं कसुख छै फल जेहनुं एहवो ते शुभकर्म थाय । अनुबंधई शुभर्नु प्रवर्तक थाय परम सुखनु साधक ते कर्म पारंपर्ये निर्वाण सुख, साधक छ । अओ अपडिबंधमेअं असुहभावनिरोहेणं सुहभावबीयंति सुप्पणिहाणं सम्मं पढिअव्वं सम्मं सोअव्वं अणुप्पेहिअव्वंति । यत एवं अतो क० ए कारण माटें प्रतिबंधरहित, निदानरहित, अशुभ भावना अनुबंधनें निरोधे करीनई शुभभावनुं बीज इति कृत्वा, इंम चित्तमां जाणीनें, ए सूत्र सुप्रणिधान कहतां शुभप्रणिधानें सम्यक् प्रशांत(ता)त्माई पठितव्यं कहतां भणq, सम्यक् प्रशांतात्माइं अन्वाख्यानविधि सांभलवू, अनुप्रेक्षितव्यं कहतां अनुप्रेक्षाविषये करवू परिभावनीयमित्यर्थः । नमो नमिअनमिआणं परमगुरुविर वी अरागाणं नमो सेसनमुक्कारारिहाणं । जयओ(उ) सव्वण्णुसासणं । परमसंबोहीए सुहिणो भवंतु जीवा सुहिणो भवंतु जीवा सुहिणो भवंतु जीवा । नमस्कार हो देवऋषिओयें नमित क. वंदित एहवाओ ,परमगुरु एहवा वीतरागोनें, नमस्कार हो शेष आचार्यादिक गुणाधिक नमस्कार योग्य महात्माओनें । कुतीर्थनें अपोहें जयवंत वत्र्तो सर्वज्ञोनु शासन । वरबोधिलाभरूप परम संबोधियें मिथ्यात्वदोषनें नाशें प्रांणी सुखिआ थाओ प्रांणी सुखिआ थाओ प्रांणी सुखिआ थाओ। इति पावपडिघायगुणबीजाहाणसुत्तं १ ॥ इति पापप्रतिघात-गुणबीजाधान नामे प्रथम सूत्र १ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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