Book Title: Panchsutra Stabak
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan
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अनुसन्धान ४२ कहतां मानइ ते गु(रु)ने पणइं, भगवंतनी आज्ञा । इत्थं तत्त्वं व्यवस्थितं, गुरुबहुमान विना प्रत्युपेक्षणादिरूप क्रिया पण अक्रिया-सक्रियाथी अन्या, केहवी ? दुःशील वनितानी उपवासादिक क्रियाने सरखी क्रिया, ततःकि ? गरहितनइं पंडितोनइ, स्या माटई मोक्षरूप इंष्ट फलथी अन्य जे सांसारिक फल तेहनी योग माटे, एज स्पष्ट करतो कहें जें- मि(वि)ष-मिश्र अन्नथी तृप्ति तेहy फल ते, माषतुष इहां दृष्टांत छ । थोडं विपाके भोग देवें आवर्त्त-संसार ते ज दारुण, क्षयोपशमथी माषतुषनी परें, यथोक्तं-"विवेकशुभभावपरिणामा वचनगुरु-तदभावेषु यमिनामिति" । विराधनारूप विषजनित को हवो छई ?, आवर्त्त, तिम तिम विराधनाने उत्कर्षे अशुभनो छे अनुबंध जेहथी एहवो छ।
____ आयवो(ओ) गुरुबहुमाणो अवंझकारणत्तेण । अओ परमगुरुसंजोगो । तओ सिद्धी असंसयं । एसेह सुहोदए, पगिट्टतयणुबंधे, भववाहितेगिच्छी । न इओ सुंदरं परं । उवमा इत्थ न विज्जई ।
इम सफल गुरुनु अबहुमान कहीनें गुरुनुं बहुमान कहें छे : आयत कहत्तां मोक्ष, गुरुनु बहुमान-गुरु-बहुमान ज मोक्ष ए अर्थ, अवंध्यकारणपणे करीने मोक्ष प्रति अप्रतिबद्ध सम्यक् हेतुपणे करीनें । एज कहई छई-गुरु बहुमानथी परमगुरु तीर्थंकरनो संयोग । ते तिर्थंकरसंयोगथी मुक्ति एकांतई । गुरुबहुमान, इहां कारणे कार्यना उपचारथी, जिम आयु थी (घी) तिम गुरुबहुमान शुभोदय कह्यो,शुभोदयना पुष्टकारण माटई । जिम आयुः स्थितिनुं पुष्ट कारण माटें घृत आयु, तिम ए दृष्टांत-दार्टीतिक-भावना । वली केहवो , गुरु बहुमान ? तिम तिम आराधनानइं उत्कर्षे करीनइं प्रधान शुभोदयनो अनुबंध छै जेहथी एहवौ, संसार-व्याधिनो चिकित्सक गुरुबहुमान ज, हेतुफलभावथी नथी गुरुबहुमानथी सारु, उपमा गुरुबहुमाननै विषई नथी विद्यमान ।
स एवंपण्णे एवंभावे एवंपरिणामे अप्पडिवडिए वड्वमाणे तेउलेसाए दुवालसमासिएणं परिआएणं अइक्कमई सव्वदेवतेउलेसं । एवमाह महामुणी । तओ सुक्के सुक्काभिजाई भवइ ।
प्रव्रजित, विमल विवेकथी, एम , प्रज्ञा जेहनी, प्रकृतिइं एहवो छै सोच जेहनो, सामान्य गुरुनेंऽ भावे पण एहवो छे परिणाम जेहनो, इंम अप्रतिपतित छतौ, वर्द्धमान कहतां वधतो, नियोगथी शुभ प्रभावरूप तेजोलेश्यायें बारमासी
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