Book Title: Panchsutra Stabak
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 30
________________ ३० अनुसन्धान ४२ परनें संतापनी अणकरनारी, विचक्षणादिभावें अनुबंधें करी अत्यंत सुंदरभली, उक्त लक्षण भोगक्रिया थकी अन्य भोगक्रिया संपूर्ण नथी, स्या माटें ? संक्लेशादिकथी, उभय लोकनी अपेक्षायें भोगक्रिया स्वरूप खंडवे करी, इति परमार्थः । एअं नाणंति वुच्चइ । एयंमि सुहयोगसिद्धी उचिय पडिवत्तिपहाणा । इत्थ भावो पवत्तगो । पायं विग्घो न विज्जई निरनु( णु ) बंधा सुहकम्मभावेणं । अक्खित्ता ओ इमे जोगा भावाराहणाओ तहा, तओ सम्मं पवत्तए, निप्फायइ अणाउले । एवं किरिआ सुकिरिआ एगतनिक्कलंका निक्कलं [क] त्थसाहिआ, तहा सुहा सुहाणुबंधा उत्तरुत्तरजोगसिद्धि(द्धी )ए । ए ग्यांन एहवुं दृष्ट वस्तु तत्त्वनुं निरूपक कहियै, ए ग्यांन छतें सुभ व्यापारनी निष्पति होई, संज्ञान आलोचनें करी ते ते अनुबंधना देखवाथी योग्य प्रतिपत्तियें करी प्रधान, प्रस्तुत प्रवत्तिनें विषें भाव ते सदंतःकरण - लक्ष प्रवर्त्तक छे, मोहे नही, प्रायें अधिकृत प्रवत्तिनें विषे भला उपाय जोग थकी विघ्न न होई असुभकर्मभावें, निरनुबंध सुभकर्मनें सानुबंध सम्यक् प्रव्रज्या भोग थकी प्रवति होई, आक्षिप्त क० अंगिकार कर्या ए जोग क० भली प्रवज्याना व्यापार, भाव आराधना थकी जन्मांतर तद ( द ) बहुमानादि प्रकारें करी, ते वर्ज्या व्यापार थकी सम्यक् वर्ते नियम, निष्पादिकपणें करी अनाकुल थको इष्टनिष्पादन करें, ए उक्त प्रकारें क्रिया ते सुक्रिया होई, सम्यक् ज्ञान थकें उचित - प्रारिभि, एकांतई कलंकरहित निरतिचारपणें करी, निकलंक कार्य जे मुख्य तेहनी साधनारी, तथा सुभ अनें सुभ अनुबंध छें जेहनो एहवी, अव्यवच्छेदें करी उत्तरोत्तर जोगसिद्धियें करी । तओ से साहइ परं परत्थं सम्मं तक्कुसले सया तेहिं तेहिं पगारेहिं साणुबंधं, महोद बीजबीजादिझवणेण, कत्तिविरिआइजुत्ते, अवंझसुहचिट्ठे, समंतभद्दे, सुप्पणिहाणाइहेऊ, मोहतिमिरदीवे, रागामयविज्जे दोसानलजलनिही, संवेगसिद्धिकरे हवइ अर्चितचिंतामणिकप्पे । स एवं परंपरत्थसाहए तहा करुणाइभावओ अणेगेहिं भवेहिं विमुच्चमाणे पावकम्पुणा, पवमाणे अ सुहभावेहिं अणेगभविआए आराहणार पाउणइ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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