Book Title: Panchsangraha Part 02 Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur View full book textPage 7
________________ ( ४ ) गया । गुरुदेवश्री ने श्री सुराना जी को दायित्व सौपते हुए फरमाया'मेरे शरीर का कोई भरोसा नहीं है, इस कार्य को शीघ्र सम्पन्न कर लो।' उस समय यह बात सामान्य लग रही थी, किसे ज्ञात था कि गुरुदेवश्री हमें इतनी जल्दी छोड़कर चले जायेंगे। किंतु क्रू र काल की विडम्बना देखिये कि ग्रन्थ का प्रकाशन चालू ही हुआ था कि १७ जनवरी १९८४ को पूज्य गुरुदेव के आकस्मिक स्वर्गवास से सर्वत्र एक स्तब्धता व रिक्तता-सी छा गई। गुरुदेव का व्यापक प्रभाव समूचे संघ पर था और उनकी दिवंगति से समूचा श्रमणसंघ ही अपूरणीय क्षति अनुभव करने लगा। __पूज्य गुरुदेवश्री ने जिस महाकाय ग्रन्थ पर इतना श्रम किया और जिसके प्रकाशन की भावना लिये ही चले गये, वह ग्रन्थ अब पूज्य गुरुदेवश्री के प्रधान शिष्य मरुधराभूषण श्री सुकनमुनि जी महाराज के मार्गदर्शन में सम्पन्न हो रहा है, यह प्रसन्नता का विषय है। श्रीयुत सुराना जी एवं श्री देवकुमार जी जैन इस ग्रन्थ के प्रकाशन-मुद्रण सम्बन्धी सभी दायित्व निभा रहे हैं और इसे शीघ्र ही पूर्ण कर पाठकों के समक्ष रखेंगे, यह दृढ़ विश्वास है। श्री मरुधरकेसरी साहित्य प्रकाशन समिति अपने प्रकाशन सम्बन्धी कार्यक्रम में इस ग्रन्थ को प्राथमिकता देकर पूर्ण करवा रही है । इस भाग के प्रकाशन में ब्यावर निवासी श्रीमान् मीठालाल जी तालेड़ा ने अपने स्व० पिताश्री घेवरचन्द जी तालेड़ा की पुण्यस्मृति में अर्थसहयोग प्रदान करने का वचन दिया है, समिति आपके अनुकरणीय सहयोग के प्रति धन्यवाद ज्ञापित करती है और आशा करती है कि भविष्य में भी इसी प्रकार अन्य उदार सद्गृहस्थों का सहयोग प्राप्त होता रहेगा। मन्त्री श्री मरुधरकेसरी साहित्य प्रकाशन समिति ब्यावर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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