Book Title: Panchamrutabhishek Path Author(s): Zaveri Chandmal Jodhkaran Gadiya Publisher: Zaveri Chandmal Jodhkaran Gadiya View full book textPage 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंडित दौलतरामजी पद्मपुराण की भाषामें पर्व ३२ श्लोक १६५ से १६९ में लिखते हैं कि:--" जो नीर कर जिनेन्द्रका अभिषेक करे सो देवोंकर, मनुष्योंकर, सेवनीक चक्रवर्ती होय, जिसका राज्याभिषेक देव विद्याधर करें, और जो दुग्धकर अन्तिका अभिषेक करे सो क्षीरसागरके जलसमान उचल विमानविषै परम कान्तिधारक देव होय, फिर मनुष्य होय, मोक्ष पावें और दधिकर सर्वज्ञ वीतरागका अभिषेक करें सो दधिसमान उज्वल यशको पाय करि भवोदधिको तरे और जो घृतकरि जिननाथका अभिषेक करे सो स्वर्ग विमानविषे महान् बलवान देव होय, परंपरासे अनंतवीर्यको धरे और इक्षुरसकर जिननाथका अभिषेक करे, सो अमृतका भाहारी सुरेश्वर होय । नरेश्वर पद पाय मुनीश्वर होय, अविनश्वर पद पाये। अभिषेकके प्रभावकर अनेक भव्यजीव देवोंकर इन्द्रों कर अभिषेक पावते भये तिनकी कथा पुराणोंविषे प्रसिद्ध है।" तथा भगवान् उमास्वामी श्रावकाचारमें लिखते हैं कि:" शुद्धतोयेक्षुसपिभिर्दुग्धदध्याम्रजैः रसैः । सर्वोषधिभिरुच्चूर्णैर्भावात्संस्नापयज्जिनम् ॥" अर्थात् --शुद्धजल, इक्षुरस, घी, दूध, दही, आम्ररस और सौषधि इत्यादिकोंसे जिनभगवानका अभिषेक करना चाहिये । आदि बनेक आचार्योने पंचामृताभिषेकका उपदेश दिया है । श्री वीरसेन मामीने कषायपाहुड जयधवलामें भी इसी तरह पंचामृतासे जिनेन्द्र भक्ति करनेके लिये कहा है। For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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