Book Title: Panchamrutabhishek Path
Author(s): Zaveri Chandmal Jodhkaran Gadiya
Publisher: Zaveri Chandmal Jodhkaran Gadiya

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Page 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परिणामों का सहाराम - प्रस्तावनाभगवान् कुन्दकुन्दने धर्मका स्वरूप बताते हुए कहा है कि " वत्थुसहावो धम्मो " अर्थात् वस्तु द्रव्य, या पदार्थका जो स्वभाव है, अर्थात् उसका गुण है, वही उसका धर्म है। साथ ही साथमें यह भी बताया है कि जीवका स्वभाव है, शान्तता अर्थात् शुद्धजीव रागद्वेषादि परिणामोंसे रहित है । फिर भी देखा जाता है कि यह प्राणी अपने पूर्वोपार्जित कर्मोंके उदयसे अथवा अज्ञानसे निरंतर अनेक प्रकारके रागद्वेषादि करता है। और स्वयं अपनी पुरुषार्थकी हीनतासे आत्माके परिणामों को कलुषित कर दिन प्रति दिन नीचेकी ओर अग्रसर होता हुआ अनादिकालमे संसारमें परिभ्रमण कर रहा है । इसी बातको लक्षमें रखकर उन चिरकालसे अशुभ रागादि परिणामोंमें सने .हुए और रागअभ्यासियोंके रागपरित्यागके हेतु गृहस्थ श्रावकोंके लिये भगवन् श्री कुन्दकुन्दने "कुन्दकुन्द श्रावकाचार" रचकर परम वीतराग श्रीजिनेन्द्र भगवान के गुणोंमें अनुराग, पूजा, भक्ति स्तवन आदिका उपदेश देकर क्रमशः रागादि परिणामोंको छुडानेका प्रयत्न किया है । पूजाके अंगमें भगवान कुन्दकुन्दाचार्य रचित " " षट्पाडुड ग्रंथकी श्रुतसागरी वृत्तिमें लिखा है किः-................"जिनविम्बस्य पञ्चामृतैः स्नपनं, अष्टविधैः पूजाद्रव्यैश्च पूजनं कुरुत यूयं, वंदना भक्तिश्च कुरुत ।" अर्थात्-............"जिनप्रतिमाका पञ्चामृतसे अभिषेक करके अष्ट प्रकार द्रव्योंसे पूजन करना चाहिये। आदि लिखा है। For Private and Personal Use Only

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