________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महापुरुषोंका अभिमत पंचामृताभिषेक, स्त्रियोंको जिनाभिषेकाधिकार आदि विषपॉके लिए आचार्योके द्वारा प्रतिपादित ग्रंथों में उल्लेख हैं। हमें बाचार्य वाक्य प्रमाण हैं। स्व. चारित्रचक्रवर्ति आचार्य शांतिसागरजी महाराज आर्षग्रंथों में प्रतिपादित कल्याणकारी क्रियाओंके प्रति प्रमादसे शिथिलाचारी बनना ठीक नहीं है। यथाविधि अभिषेक पूजादि करनेसे श्रावकोंको पुण्यबंध ही नहीं, कर्मनिर्जरा भी होती है। तपोनिधि स्व. आचार्य वीरसागरजी महाराज भगवानके अभिषेक पूजनका वही अधिकारी हो सकता है जो मुनिदान देनेका अधिकारी हो / मुनिदान देनेका अधिकार स्त्रियोंको भी है, अतः अभिषेक पूजनका भी अधिकार उन्हे है। न्यायालंकार, वा. के. न्यायदिवाकर, पं. मक्खनलालजी शास्त्री जैनधर्मम नर और नारी दोनोंको समान धार्मिक अधिकार प्राप्त है / अतः जैनाचार्योंने नारियोंके लिए भी पूजन प्रक्षालके डाधिकार पुरुषोंके समान ही दिये हैं। साहित्यसरि, विदुषीरत्न ब्रा. पं. चंदाबाईजी आरा Printed by V. P. Shastris at Kalyan Power Printing Press, Kalyan Bhawan, Sholapur. For Private and Personal Use Only