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-[२८]इसी प्रकार हरिवंशपुराणमें श्रीनेमिनाथ तीर्थकरके जन्मोत्सबके वर्णनमें भी निम्नलिखित प्रमाण है ।
ततः सुरपतिस्त्रियः जिनमुपेत्य शच्यादयः। सुगंधितनुपूर्वकैः मृदुकराः समुद्रर्तनम् । प्रचारभिषचन शुभपयांभिरुचघटैः। पयोधरभर्निजरिव कुचैः समावर्तितः।
अर्थात् उसके बाद शची महादेवी आदि देवांगनावोने भगवंतके शरीरको स्पर्श करते हुए सुगंधित जल्स अभिषेक किया । वे घट उनके कुचकुंभवे. अनुसार थे। सभी इंद्राणियोंने एक साथ ही अभिषेक किया।
श्री भगवद् गुणभद्राचार्य कृत जिनदत्त चरित्रमें देखिये । गृतिगंधपुष्पादिप्रार्चनाःसपरिच्छदा। अथैकदा जगामैषा प्रातरंव जिनालयम् । त्रिःपरीत्य ततः स्तुत्वा जिनांश्च चतुराशया,
संस्नाप्य पून यित्वा च प्रयाता यतिसंसदि ।
अर्थात्:-एक दन वह श्रष्ठिपत्नी जीव-सा स्नानादिके द्वारा शुद्ध होकर अपने परिवार के साथ प्रातः जिनालयमें गई, और जिनालयको तीन प्रदक्षिणा देकर स्तुतिपूर्वक अभिषेक करके मुनियोंकी सभामें गई।
श्र नेमिचंद्रकृत श्रीपालचरित्रमें देखिये:अथैकदा नुता सा च सुधी मदनसुंदरी। कृत्ला पंचामृतः स्नान जिनानां सुखकोटिंद।
अर्थात् अनंतर वह गुणवती मदनसुंदरीने कोटिसुखप्रद, जिनेंद्रका पंचामृतोंसे अभिषेक किया ।
आराधना कथाकाषमें प्रमाण देखिए ।
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