Book Title: Panchamrutabhishek Path
Author(s): Zaveri Chandmal Jodhkaran Gadiya
Publisher: Zaveri Chandmal Jodhkaran Gadiya

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Page 38
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -[२६] नहीं करना चाहिए । बहुतसे सजन इसमें कुतर्क उठाते हैं कि वे प्रति समय अशुचि रहती हैं। अतः उन्हें देवाजादिका आधिकार नहीं । सो यह कहना बराबर नहीं है। वे हर समय अशुचि नहीं रहती हैं । अशुचि रहने की कोई कालमर्यादा है । उस मर्यादातक के ऐसे कार्योंसे दूर रहे, इसमें किसको आपत्ति हो सकती है ? सदा अशुचि बता कर उन्हें धर्मकार्यसे वंचित करना ठीक नहीं है । त्रियों को अर्जिकापदतक पहुंचने की मान्यता है। अर्जिकापद भी उपचारसे महावत ही है । फिर वे क्या गृहस्थोचित दानपूजा सदृश कार्यको भी नहीं कर सकती हैं ? ___ यदि स्त्रियां अपवित्र होने के कारण पूजा नहीं कर सकती है तो साधुवों को आहारदान कैसे दे सकती हैं ? आहारदान तो देती ही हैं। इसलिए अपवित्र होने का कोई कारण सयुक्तिक नहीं । शायद इसीलिए अब यह बतला दिया जा रहा है कि वे आहारदान भी नहीं दे सकी हैं । एक गलती को पोषण करनेके लिए दूसरी गलती की जा रही है। स्त्रियोंने पूजा की है, आहारदान दिया है, इसके लिए ग्रंथों में प्रमाण है। उदाहरण हैं । यदि उन्हें अधिकार नहीं था तो ये प्रमाण कैसे उपस्थित होते ? (१) आदिपुराणमें स्वयंप्रभादेवी का वर्णन जहां आया है वहां छह महिनेतक वह जिनपूजामें उद्यत थी, यह लिखा गया है । (२) आदिपुराण पर्व ४२ मे सुलोचनाके संबंधमें देखिए। तत्प्रतिष्ठाभिषेकांते महापूजा प्रकुर्वती । मुहुः स्तुति भिराभिः स्तुवती भक्तितोर्हतः। ददाति पात्रदानानि मानयंति महामुनीन् । इत्यादि । For Private and Personal Use Only

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