Book Title: Panchamrutabhishek Path
Author(s): Zaveri Chandmal Jodhkaran Gadiya
Publisher: Zaveri Chandmal Jodhkaran Gadiya

View full book text
Previous | Next

Page 33
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - [२१] पंचपरमेष्ठीकी आरती. यह विधि मंगल आरति कीजे, पंचपरमपद भजि सुख लीजे। प्रथम आरती श्री जिनराजा, भवदपि पार उतार जिहाजा ॥१॥ दूनी आरति सिद्धन फेरी सुमिरन करत मिटत भवफेरी॥२॥ तीजी आरति सूरि भुनींद्रा जन्ममरण दुख दूर करिंदा ॥३॥ चौथी आरति श्री उवझाया, दर्शन होक्त पाप पलाया ॥ ४॥ पांचवीं आरति साधु तुम्हारी, कुमतिविनाशन शिवअधिकारी। छट्टी ग्यारह प्रतिमाधारी, श्रावक बंदो आनंदकारी ।। ६ ।। सातवीं आरति श्रीजिनवाणी, संवत स्वर्ग-पुकतिसुखदानी। पूजा करके आरति कीजे, जनम जनमका लाहो लीजे । जो यह आरति पढे पढावे, द्यानत अजर अमर पद पावे ।। पद्मावति माताकी आरती. पद्मावति माता दर्शनकी बलिहारियां । पार्श्वनाथ महाराज विराजे मस्तक ऊपर थारे । इन्द्र फणीन्द्र नरेन्द्र सभी खडे रहे नित द्वारे॥पद्मावति ।। जो जिय थारो शरणो लीनो सब संकट हर लीनी । पुत्र पौत्र धन संपति देकर मंगलमय करि दीनो ॥ २ ॥ डाकिन शाकिन भूत भवानी नाम लेत भगजाये। वात पित्त कफ रोग मिटे अरु तन मन सुख हो जावे ॥३॥ दीप धूप अरु पुष्पहार ले मैं दर्शनको आया । दर्शन करके माता तुम्हारे मनवांच्छित फल पाया ॥४॥ For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42