________________
हुए हैं. इस काममें उनकी प्रेरणा तथा सहायता न होती तो हम इस कामको नहीं ही कर पाते. अतः कोशके उपयोग करनेवाले विद्यार्थी व जिज्ञासु गण तथा हम भी भाई शादीलालजी जैनके बडे आभारी हैं. और हम आशा करते हैं कि सानुवाद प्राकृतव्याकरण (आ. हेमचंद्र कृत) इत्यादि और भी ऐसे उपयोगी ग्रंथोंके प्रकाशन करने में वे जरूर इस प्रकारकी अपनी सहायता देनेकी परंपरा चालू रखेंगे.
प्रस्तुत संपादन का परिचय
इस संपादन को हमने अपने प्रथम संपादनके ढंगसे प्रकाशित किया है. शब्दों के अर्थ प्रत्येक पन्नेमें हिंदीमें दिये हैं तथा पीछे कोशमें आए हुए सभी शब्दोंका अकारादि क्रमसे अनुक्रम तथा हिंदी और अंग्रेजी इन दो भाषाओंमें अर्थ बताया है. अब कोई विद्यार्थी हिंदी नहीं जानता ऐसी बात नहीं है- गुजरातके क्या और महाराष्ट्रके क्या सभी विद्यार्थी हिंदी अनिवार्य रीतिसे पढते हैं अतः हिंदीमें अर्थ बताना समुचित है और जो विद्यार्थी व जिज्ञासु हिंदी नहीं जानते परंतु नागरी लिपि जानते हैं और प्राकृतभाषाके अभ्यासमें रस रखते हैं ऐसे तामिलादि प्रांत के तथा पश्चिम के जिज्ञासुओं के लिए हमने अंग्रेजीमें भी अर्थ बताना समुचित समझा है. अंग्रेजीके अर्थ के लिए हमने डो. बुल्हरकी आवृत्तिका सहारा लिया है. एतदर्थ सद्गत डो. बुल्हरके हम सविशेष आभारी हैं. हम खुद इतना अच्छा अंग्रेजी नहीं जानते हैं, इससे अंग्रेजीके द्वारा अर्थप्रदर्शन में हमारी अनेक गलतियां जरूर हुई होंगी, इसके लिए हम सब जिज्ञासुओंसे क्षमा मांगते हैं तथा इस संबंधमें सूचन करने की भी उनको सविनय विनंति करते हैं.
मुनि श्रीजिनविजयजी का सूचन
पहिले तो हमारा विचार केवल हिंदीमें ही अर्थ देनेका था, परंतु दो
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org