Book Title: Paia Lacchinammala
Author(s): Dhanpal Mahakavi, Bechardas Doshi
Publisher: R C H Barad & Co Mumbai

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Page 13
________________ प्राकृतकोश के प्रकाशन का वृत्तांत २ यद्यपि भारतीय जनता विद्याप्रेमी नहीं हैं ऐसा नहीं, 'विद्ययाऽमृतमश्नुते ', ' न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते ', ' पढमं नाणं तओ दया' ( प्रथमं ज्ञानम् ततः दया ) इस प्रकारकी घोषणाएं भी भारतीय जनता आज हजारों वर्षों से लगाती आई है, फिर भी पूर्व की अपेक्षा आज कल पश्चिममें जिस प्रकार ज्ञानभानु वा विज्ञानभानु उदित होकर अधिकाधिक जगमगा रहा है इसका वर्णन करना कठिन है. पश्चिमके पंडितोंने बडी बडी कठिनाइयों को सहकर भी पूर्व के विविध शास्त्रोंके अतिशय सुंदर संपादन व प्रकाशन किये हैं तथा वर्तमान में भी करते हैं. ये संपादन व प्रकाशन इतनी उत्तम कोटिके होते हैं जिनको पढकर हम तो आनंदविभोर हो जाते हैं और लज्जासे अधोमुख भी. ये पश्चिमके लोग हमारी परिभाषामें अनार्य हैं वा यवन हैं तो भी उनकी ज्ञानपिपासा कितनी उत्कटतम है, यह सोचकर आनंद होता है और आर्य - आर्यत्व बडे अभिमानी होकर भी हमारे ही शास्त्रों के उत्तमोत्तम प्रकार के प्रकाशनमें व संपादनमें कितने मंदतम है, इस सोच से अधोमुख ही होना पडता है. देखिए, पश्चिम के पंडितोंका कितना बडा पुरुषार्थ है कि आजसे बराबर अस्सी वर्ष पूर्व अर्थात् ईस्वीसन् १८७९ में डॉ. बुल्हर महाशयने बडे प्रयत्नसे पाइअलच्छीनाममाला ( प्राकृतलक्ष्मीनाममाला) नामका महाकवि धनपालविरचित एक छोटा कोश मूलसहित, पाठांतर सहित अपने देशमें छापा और उसमें अंग्रेजीमें अर्थोंके साथ एक अकारादि शब्दानुक्रम भी लगा दिया. अधिक आश्चर्य की बात तो यह है कि जब हमारे देशके पंडितगण 'प्राकृत' किस चिडिया का नाम है यह जानते थे या नहीं यह विवादास्पद है और जो जानते थे वे जैन मुनिमहाराज तो बिलकुल इस प्रकाशनके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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