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प्राकृतकोश का प्रकाशन
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आजकल प्राकृतभाषाओं का अभ्यास बढ रहा है. विनयमंदिरों, महाविद्यालयों तथा विद्यापीठों तक प्राकृतभाषाके अभ्यासकी व्याप्ति हो चुकी है. उसके कई छोटे मोटे प्राचीन व्याकरण भी प्रकाशित हो गए हैं, ये सब व्याकरण संस्कृत के माध्यम से लिखे गए हैं, अतः सबको सुगम नहीं होते, इसी कारण से कई संस्थाओंने तथा पंडितोंने लोकभाषा गुजराती, हिन्दी तथा बंगाली में भी प्राकृतभाषाओं के छोटे मोटे व्याकरण सबको सुगम हो इसके लिए रच कर प्रकाशित किए हैं. हमारे सहाध्यायी और प्रियमित्र स्व. पंडित हरगोविंददासजी सेठने 'पाइअसद महण्णवो' ( प्राकृतशब्दमहार्णवः ) नामका एक अच्छा बडा कोश भी हिंदी में बनाकर प्रकाशित किया है । यद्यपि यह कोश आजकल महंगा है और दुर्लभ - दुर्मील भी है। फिर भी यह कोश विद्यार्थियों को तथा विद्वानों को प्राकृतभाषाके अध्ययनके लिए बडा सहायक बना है.
इस प्रकार प्राकृतभाषाके अभ्यासके लिए वर्तमान में अच्छी साधनसामग्री उपलब्ध है। फिर भी छोटे व्याकरण की तरह प्राकृत भाषाके एक छोटे कोशकी अपेक्षा बनी रहती है, जिसको सब विद्यार्थी व अध्यापक खरीद सकें. यह कोश हिंदी में भी हो और अंग्रेजी में भी हो यह भी अपेक्षित है. इस अपेक्षा को ध्यान में रख कर यह एक छोटा प्राचीन प्राकृत शब्दकोश प्रकाशित किया जा रहा है. कागज तथा छपाई वगैरह का व्यय अत्यधिक बढ जाने पर भी इस कोश को अधिक उपयोगी बनाने का विचार किया है, जिससे सब छात्र व अध्यापक इसका उपयोग कर सकें तथा वे अपने प्राकृतभाषाके अभ्यास में समुत्साहित होकर आगे बढ सकें.
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