Book Title: Padarth Prakash Part 17
Author(s): Hemchandrasuri
Publisher: Sanghavi Ambalal Ratanchand Jain Dharmik Trust

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Page 212
________________ ૧૯૩ सावचूरिकं श्रीगाङ्गेयभङ्गप्रकरणम् पंचपवेसि दुजोए, संजोगा इह हवंति चत्तारि । तिगजोए छज्जोआ, चउसंजोगा य चत्तारि ।। ६ ।। व्याख्या - 'पंचपवेसि' त्ति पञ्चानां प्रवेशे चत्वारो द्विकसंयोगा भवन्ति, तद्यथा - २३ ३२ ४|१ त्रिकयोगे षट्संयोगा भङ्गा भवन्ति, तद्यथा - |१|१| ३ | १२ | २ २|१२ २२१ ३११ चतुष्कसंयोगाश्चत्वारो भवन्ति, तद्यथा - १|१|१२| |१|१|२|१ |१|२|१|१ |२|१|११| इग पंचगसंजोगो, छपवेसे पंच हुंति दुगजोगा । तिगजोगा दस चेव य, चउक्कसंजोग दस एव ।। ७।। व्याख्या - पञ्चकसंयोग एक एव, तद्यथा- १|१|१११ षट्प्रवेशे पञ्च द्विकसंयोगा भवन्ति, तद्यथा - [१५] २४ | Irm][3 ३

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