Book Title: Padarth Prakash Part 17
Author(s): Hemchandrasuri
Publisher: Sanghavi Ambalal Ratanchand Jain Dharmik Trust

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Page 223
________________ ।। अर्हम् ।। अथ गाङ्गेयभङ्गप्रस्तारो लिख्यते -- एकसंयोगे भङ्गाः ७ प्र-१, द्वि-२, तृ-३, च - ४, पं - ५ ष ६, स ७ । द्विकसंयोगे भङ्गाः २१, प्र-द्वि- १, प्र-तृ-२, प्र-च-३, प्र-पं- ४, प्र-ष-५, प्र-स-६, द्वि-तृ ७, द्वि-च-८, द्वि-पं-९, द्वि-ष-१०, द्वि-स-११, तृ-च-१२, तृ-पं- १३, तृ-ष१४, तृ-स-१५, च-पं १६, च-ष-१७, च-स- १८, पं- ष - १९, पं-स- २०, ष-स२१ । त्रिकसंयोगे भङ्गाः ३५ प्र- द्वि-तृ - १, प्र-द्वि-च-२, प्र-द्वि-पं-३, प्र-द्वि-ष-४, प्र - द्वि-स-५, प्र-तृ-च-६, प्र-तृ-पं- ७, प्र-तृ-ष-८, प्र-तृ-स-९, प्र-च- पं- १०, प्र-च-ष११, प्र-च-स-१२, प्र-पं-ष- १३, प्र-पं-स- १४, प्र-ष-स- १५, द्वि- तृ-च- १६, द्वि-तृपं-१७, द्वि-तृ-ष-१८, द्वि- तृ-स- १९, द्वि-च-पं-२०, द्वि-च-ष-२१, द्वि-च-स-२२, द्वि-पं-ष-२३, द्वि-पं-स-२४, द्वि-ष-स-२५, तृ-च-पं- २६, तृ-च-ष-२७,, तृ-च-स२८, तृ-पं-ष-२९, तृ-पं-स-३०, तृ-ष-स- ३१, च-पं-ष- ३२, च- पं-स- ३३, च-षस-३४, पं-ष-स-३५ । चतुष्कसंयोगे भङ्गाः ३५ प्र- द्वि- तृ-च-१, प्र-द्वि-तृ-पं-२, प्र-द्वि- तृ-ष- ३, प्र-द्वि- तृ-स- ४, प्र-द्वि-च- पं-५, प्र-द्वि-च-ष-६, प्र-द्वि-च-स-७, प्र-द्विपं-ष-८ प्र-द्वि-पं-स-९, प्र-द्वि-ष-स- १०, प्र-तृ-च-पं- ११, प्र-तृ-च-ष-१२, प्र-तृ-चस- १३, प्र-तृ-पं-ष-१४, प्र-तृ-पं-स-१५, प्र- तृ-ष-स- १६, प्र-च- पं ष - १७, प्र-च-पंस-१८, प्र-च-ष-स-१९, प्र- पं ष स २०, द्वि- तृ-च-पं- २१, द्वि-तृ-च-ष-२२, द्वि-तृच-स-२३, द्वि-तृ-पं-ष-२४, द्वि-तृ-पं-स-२५, द्वि-तृ-ष-स-२६, द्वि-च- पं-ष-२७, द्वि-च-पं-स-२८, द्वि-च-प-स-२९, द्वि- पं-ष-स- ३०, तृ-च-पं-ष- ३१, तृ-च-पं-स३२, तृ-च-ष-स-३३, तृ-पं-ष-स-३४, च- पं-ष- स - ३५ । पञ्चकसंयोगे भङ्गाः २१, प्र-द्वि-तृ-च-पं-१, प्र-द्वि-तृ-च-ष-२, प्र-द्वि-तृ-च-स-३, प्र-द्वि-तृ-पं-ष-४, प्रद्वि-तृ-पं-स-५, प्र-द्वि- तृ-ष-स-६, प्र-द्वि-च- पं-ष-७, प्र-द्वि-च- पं-स-८, प्र-द्वि-च-षस-९, प्र-द्वि-पं-ष-स-१०, प्र-तृ-च-पं-ष-११, प्र-तृ-च- पं-स- १२, प्र-तृ-च-प-स-१३, प्र-तृ-पं-ष-स-१४, प्र-च-पं-ष-स-१५, द्वि-तृ-च-पंप-१६, द्वि- तृ-च-पं-स- १७, द्वितृ-च-प-स-१८, द्वि-तृ-पं-प-स- १९, द्वि-च-पं-ष-स- २०, तृ-च-पं-ष-स- २१ । षट्संयोगे भङ्गाः ७ प्र-द्वि-तृ-च-पंप-१, प्र-द्वि-तृ-च-प-स-२, प्र-द्वि-तृ-च-प-स३, प्र-द्वि-तृ-पं-ष-स-४, प्र-द्वि-च- पं-प-स-५, प्र-तृ-च-पं-प-स-६, द्वि-तृ-च-पं-प-स७ । सप्तसंयोगे भङ्गः १, प्र-द्वि-तृ-च- पं-प-स- १ ।

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