Book Title: Oswalotpatti Vishayak Shankao Ka Samadhan
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala

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Page 14
________________ ओसवालों की उत्पत्ति है पर वही से हु करंटग ___ "विक्रम सं० १०७३ में उपकेशगच्छाचार्य देव. गुप्तसूरि ने नवपद प्रकरण लघुवृत्ति की रचना की वि० सं० १०६२ पाटन नगर में उपकेशीय महाबीर मन्दिर में इस लघुवृत्ति पर बृहद्वृत्ति की रचना की।"* इस भाँति सैकड़ों हजारों शिलालेख और प्राचीन ग्रंथ इस समय विद्यमान हैं जिनमें उपकेशवंश और उपकेशगच्छ का प्रयोग पाया जाता है, पर कहीं ओशियों या ओसवाल शब्द नजर नहीं आते । जब से उपकेशपुर का अपभ्रंश आशियों हुआ तब से कहीं २ इस शब्द का भी उल्लेख हुआ है पर वह बहुत थोड़े प्रमाण में और समीपवर्ती समय विक्रम की तेरहवीं शताब्दी से हुआ है, जैसे ___ "सं० १२१२ ज्येष्ठ वदि ८ भौमे श्री कोरंटंगच्छे श्री नन्नाचार्य संताने श्री श्रोशवंशे मंत्रि धाधुकेन श्री विमल मन्त्री हस्तीशालाया श्री आदिनाथ समवसरणं कारयांचके श्री नन्नसूरि पदे श्री कक्कमूरिभिः प्रतिष्ठितं वेलापहनी वास्तव्येन ।" ( स० जिन विजयजी सं० शि. द.लेखाङ्क २४८ ) इसके पहिले कहीं पर ओसवाल शब्द का प्रयोग नजर नहीं आया है। पूर्वोक्त ऐतिहासिक प्रमाणों से यह सारांश निकलता है कि श्रोसवाल शब्द यह असली (मूल शब्द ) नहीं है किन्तु उपकेश का अपभ्रंश है। पहिले जो जैन धर्माऽनुयायी उपकेश वंशीय थे वे ही आज ओसवाल नाम से विख्यात है। और इनका प्रारम्भ विक्रम की तेरहवीं शताब्दी से होता है। श्रीमान् बाबू पूर्णचन्द्रजी नाहर अपने शिलालेख संग्रह खण्ड तीसरे में पृष्ट २५ पर "ओसवालज्ञाति नामक" लेख में लिखते हैं * इस स्थान पर हमने समय का निर्णय न कर केवल शब्द को ही सिद्ध करने का प्रयत्न किया है। Shree Suunarmaswami Gyanthandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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