Book Title: Oswalotpatti Vishayak Shankao Ka Samadhan
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala

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Page 31
________________ प्राचीन प्रमाणं •rrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr ~~~~~~~~~ इस विषय पर अधिकाधिक प्रकाश पड़ता जायगा। और हमारे पूर्वाचार्यों की मान्यता सत्य की कसोटी पर खरी मालूम होगी। कहा है कि "पुरुषार्थेण सिद्धिः" याने प्रत्येक व्यक्ति को शुद्ध भावों से पुरुषार्थ करता रहना चाहिए, इसी में कार्य की सिद्धि है । क्रमधिकम् ।। १-उपकेश वंश की उत्पत्ति वीरात ७० वर्ष अर्थात् विक्रम पूर्व ४०० वर्ष होने के विषय में जो प्रमाण मिला उसको यह उध्धृत कर देते हैं। अस्ति स्वस्ति चक्रवद् भूमेमरु देशस्य भूषणम् । निसर्ग सर्ग सुभग, मुपकेशपुरं वरम् ॥१८॥ 'मार्गाः' यत्र सदारामाः, अदाराः मुनिसत्तमाः । विद्यन्ते न पुनः कोऽपि, तादृग पौरेषु दृश्यते ॥१६॥ यत्र रामागतिं हंसाः, रामाः वीक्ष्य च तद्गतिम् । विनोपदेश मन्योऽन्यं, तां कुर्वन्ति सुशिक्षिताम् ॥२०॥ सरसीषु सरोजानि, विकचानि सदाऽभवन् । यत्र दीप्तमणि ज्योति,-ध्वस्त रात्रितमस्त्वतः ॥२१|| निशासु गतभर्तृणां, गृहजालेषु मुभ्रुवाम् । प्राप्ता श्चन्द्रकराः कामा-तिप्ताः रूप्याः शराइव ॥२२॥ यत्रास्ते वोर निर्वाणात् सप्तत्या वत्सरैर्गतः । श्रीमद्रनप्रभाचार्यः, स्थापितं वीर मन्दिरम् ॥२३॥ तदादि निश्चलासीनो, यत्राख्याति जिनेश्वरः । श्री रत्नप्रभसूरीणां, प्रतिष्ठाऽतिशया जने ॥२४॥ यत्र कृष्णाऽगुरुद्घृत,-धूमश्यामालित त्विषा । सदैव ध्रियते तस्मान भासा श्यामलं वपुः ॥२५॥ मृदङ्ग ध्वनि माकर्ण्य, मेघ गर्जित विभ्रमात् । मयूराः कुर्वते नृत्यं, यत्र प्रेक्षण करणे ॥२६॥ प्रतिवर्ष पुरस्यान्त, यंत्र स्वर्णमयो रथः । पौराणां पाप मुच्छेत्तु, मिव भ्रमति सर्वतः ॥२७॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umata, Surat www.umaragyanbhandar.com

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