Book Title: Oswalotpatti Vishayak Shankao Ka Samadhan
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala

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Page 52
________________ ४८ ओसवालों की उत्पत्ति १६-पं० हीरालाल हंसराज ने अपने ऐतिहासिक ग्रंथ "जैन गोत्र संग्रह" नामक पुस्तक में लिखा है कि भीनमाल के राजा भांण ने उपकेशपुर के रत्नाशाह की पुत्री के साथ लम किया था, और राजा भांण का समय वि० सं० ७७५ का है और इसके पहिले उपकेस वंश खूब विस्तार पा चुका था। यह सिद्ध होता है । १७-६० हीरालाल हंसराज ने अपने ऐतिहासिक ग्रन्थ "जैन गोत्र संग्रह" में भिन्नमाल के राजा भांण के संघ के समय वासक्षेप की तकरार होने से वि० सं० ७७५ में बहुत से गच्छों के आचार्यों ने संमिलित हो यह मर्यादा, बांधी कि भविष्य में जिसके प्रतिबोधित जो श्रावक हो वे ही वासक्षेप देवें। इस कार्य में निम्नलिखित आचार्यों ने सहमत हो अपने हस्ताक्षर भी किए थे। नागेन्द्र गच्छीय-सोम प्रभसरि । उपकेश गच्छीय-सिद्ध सूरि । निवृत्ति गच्छीय- महेन्द्र सूरि । विद्याधर गच्छीय-हरियानन्द सूरि । ब्राह्मण गच्छीय---जज्जग सूरि । (वा) साडरा गच्छीय-ईश्वर सूरि । वृद्ध गच्छीय-उदय भभ मूरि। इत्यादि बहुत से प्राचार्यों ने अपनी सम्मति दी थी। इससे भी यह पुष्ट होता है कि इस समय के पहिले उपकेशगच्छ के आचार्यों ने अपनी अच्छी उन्नति की थी। तब यह जाति इनसे पूर्व बनी हुई और विशाल हो इसमें क्या सन्देह है ? । १८-ओशियों मन्दिर की प्रशस्ति के शिलालेख में उपकेशपुर के पड़िहार राजाओं में वत्सराज की बहुत प्रशंसा लिखी है। जिसका समय वि० सं० ७८३ या ८४ का है। इससे भी यही प्रकट होता है कि उस वख्त उपकेशपुर की भारी उन्नति थी। इससे आबू के उत्पल देव पँवार ने ओंशियों बसाई यह भ्रम भी दूर हो जाता है। १९-वि० सं० ८०२ में पाटण (अणहिलवाड़ा) की स्थापना के समय चंद्रावली और भीनमाल से उपकेशवंश, पोरवाल और श्रीमाल Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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