Book Title: Oswalotpatti Vishayak Shankao Ka Samadhan
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala

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Page 55
________________ प्राचीन प्रमाण ३०-सातर श्री शान्तिविजयजी ने अपने "जैन मत पताका" नाम ग्रंथ में लिखा है कि वीरात् ७० वर्षे आचार्य रत्नप्रभसूरि ने ओसवाल बनाये। ३१-६० हीरालाल हंसराज ने अपने “जैन इतिहास" नामक ग्रंथ में लिखा है कि वीरात् ७० वर्षे ओसा नगरी में आचार्य रत्नप्रभ. सूरि ने ओसवाल बनाये। ३२-प्रो० मणिलाल बकोर भाई सुरत वाला ने अपने "श्री मालवाणियों ना ज्ञात भेद" नामक ग्रन्थ में लिखा है कि विक्रम पूर्व ४०० वर्षे उएस-उकेश वंश की स्थापना आचार्य रत्नप्रभसूरि द्वारा हुई । (लेखक महोदय ने तो विस्तृत प्रमाणों द्वारा यह भी सिद्ध कर दिया है कि श्रीमाल टूट के ही उपकेशपुर बसा है) ३३–परम योगिराज मुनि श्री रत्न विजयजी महाराज बहुत शोध खोज के पश्चात् इस निर्णय पर आए हैं कि वीरात् ७० वर्षे श्रोशियों नगरी में प्राचार्य रत्नप्रभसूरि ने श्रोश वंश की स्थापना की। ३४-व्या० वा० यतीन्द्र विजयजी महाराज ने "कोरंटा तीर्थ का इतिहास" नाम के ग्रन्थ में लिखा है कि वीरात् ७० वर्षे प्राचार्य रत्नप्रभसूरि ने उपकेशपुर में उपकेशवंश की स्थापना कराके वहां महावीर के मन्दिर की प्रतिष्ठा की और पसी समय कोरंटपुर में भी महावीर मन्दिर की प्रतिष्ठा श्राप श्री ने करवाई। ३५-"एरिनपुरा की छावनी से ३ कोश के लगभग कोरंट नाम का नगर उजड पड़ा है। जिस जगह कोरंटा नाम से आजकल गाँव बसता है वहाँ भी श्री महावीरजी की प्रतिमा मन्दिर की श्री रत्नप्रभसूरिजी को प्रतिष्ठा कराई हुई अब विद्यमान काल में सो मन्दिर खड़ा है।" जैन धर्म विषयक प्रश्नोतर के पृष्ट ८१ में (आत्मारामजी म०) ३६-"उएस या ओसवंश के मूल संस्थापक यही रत्नप्रभसूरिजी थे इन्होने श्रोसवंश की स्थापना महावीर के निर्वाण से ७० वर्ष बाद उकेश (वर्तमान श्रोसियां) नगर में की थी। आधुनिक कतिपय कुलगुरु कहा करते हैं कि रत्नप्रभाचार्यजी ने बीये बावीसे (२२२) में प्रोसवान Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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