Book Title: Oswalotpatti Vishayak Shankao Ka Samadhan
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala

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Page 35
________________ प्रचीन प्रमाण इस प्रमाण से स्पष्ट पाया जाता है कि "ब्राह्मणश्च जगद्गुरुः,, आर्यावर्त में सर्वत्र सब के गुरु ब्राह्मण ही समझे जाते थे, परन्तु ऊहड़ मंत्री के समय से जैन जातियों के साथ ब्राह्मणों का सम्बन्ध टूट गया। जो आज पर्यन्त भी जैन जाति और ब्राह्मणों का गुरु यजमान का सम्बन्ध नहीं है यदि उपरोक्त बात सत्य है तो उपकेश वंश की उत्पत्ति का समय वीरात् ७० वर्ष बाद का मानने में किसी तरह का सन्देह नहीं रहता है। (३) उपकेशपुर में महावीर का मन्दिर के साथ ही साथ कोरं. टकपुर में श्रीमहावीर मन्दिर की शुभ प्रतिष्ठा आचार्य श्रीरत्नप्रभसूरि ने करवाई का उल्लेख प्रचानी ग्रन्थों में मिलते हैं और इस बात को प्रमाणित करने वाला एक लेख प्रभाविक चरित्र में भी मिलता है जो की कोरण्टकपुर में महावीर के मन्दिर की प्राचीनता पर ठीक प्रकाश डालता है "तथाश्च,,। "अस्ति सप्तशती देशो, निवेशो धर्म कर्मणाम् । यहानेशभिया भेजु,स्ते राज शरणं गजाः ॥ ४ ॥ तत्र कोरण्टकं नाम, पुर मस्त्युन्नता श्रयम् । द्विजिह्वविमुखा यत्र, विनता नन्दना जनाः ॥ ५॥ तत्रा ऽस्ति श्री महावीर चैत्यं चैत्यं दधद् दृढम् । कैलास शैलवभाति, सर्वा श्रयतया ऽनया ॥ ६॥ उपाध्यायो ऽस्ति तत्र श्री देवचन्द्र इति श्रुतः । विद्वद्वन्द शिरोरत्न, तमस्ततिहरो जनैः ॥ ७ ॥ आरण्यक तपस्यायां, नमस्यायां जगत्यपि । सक्तः शक्तान्त रंगा ऽरि-विजये भव तीर भूः ॥८॥ सर्वदेवप्रभु, सर्वदेव सध्यान सिद्धिभृत् । सिद्ध क्षेत्रे यियासुः श्री वाराणस्याः समागमत् ॥६॥ बहुश्रुत परिवारो, विश्रान्त स्तत्र वासरान् । काँश्चित प्रबोध्य तान् , चैत्यव्यवहारममोचयत् ॥१०॥ Shree SudharmaswamyGyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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