Book Title: Oswalotpatti Vishayak Shankao Ka Samadhan
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala

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Page 46
________________ श्रोसवालों की उत्पत्ति के प्रभाव से उपकेशपुर का व्यापार कम हुआ हो और वहां के निवासी अन्य स्थान में जाकर वसे हों और यहां के लोग उनको उपकेश-वंशी कहने लग गये हों तो कोई आश्चर्य नहीं। पूर्वोक्त दोनों प्रमाणों से यह सिद्ध होता है कि उपकेशपुर में महाजन संघ की स्थापना होने के बाद तीन चार शताब्दी तक तो महाजन संघ की खूब वृद्धि हुई बाद कई लोगों ने पूर्वोक्त कारणों से उपकेशपुर का त्याग कर अन्य प्रदेश में जाकर वास किया हो और वे वहां के लोगों द्वारा उपकेशवंशी कहलाये हों तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है तात्पर्य यह है कि महाजनवंश का उपनाम उपकेशवंश का होना विक्रम की पहली शताब्दी के आस पास का समय होना चाहिये।। ८-माहेश्वरी-वंश-कल्पद्रुम नाम की पुस्तक में माहेश्वरी लोगों की उत्पत्ति विक्रम की पहिली शताब्दी में होनी लिखते हैं। इसके पहिले उपकेशवंश का विद्यमान होना कई प्रमाणों से प्रमाणित है । ९-भाट भोजक और कुल गुरुओंकी वंशावलियों में ओसवालों की उत्पत्ति का समय वि० सं० २२२ का लिखा मिलता है । पर जांच करने से यह पता चलता है कि उसी समय आभापुरी से देशल का पुत्र जगशाह उपकेशपुर में महावीर की यात्रा और सच्चिया देवी के दर्शनार्थ आया था, उस समय भोजकों को एक करोड़ रुपयों का दान दिया था। उसी समय से वे शायद ओसवालों की उत्पत्ति का समय २२२ में कहते हों तो कोई असम्भव नहीं। इस विषय के कुछ प्राचीन कवित्त भी मिले हैं जो पाठकों के अवलोकनार्य नीचे दिये जाते हैं: "आभा नगरी थी आव्यो, जग्गो जग में भाण । साचल परचो जब दियो, तब शीश चढ़ाई आण ॥ जुग जीमाड्यो जुगत सु, दीधो दान प्रमाण । देशल सुत जग दीपतां, ज्यारी दुनिया माने काण ।। ___+ + + चूप धरी चित भूप, सेना लई अगल चाले । अरबपति अपार, खडबपति मिलीया माले ।। देरासर बहु साथ, खरच सामो कौण भाले । Shree Sudharmaswami Gyan handar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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