Book Title: Oswalotpatti Vishayak Shankao Ka Samadhan
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala

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Page 34
________________ ओसवालों की उत्पत्ति एव दुनियाँ को विनों का हुक्म शिर चढ़ाना ही पड़ता था। उस समय का ही जिक्र है कि एक बार मंत्री ऊहड़ व्यापारार्थ भारत के बाहिर विदेशों में जा वापिस आया, ब्राह्मणों की भेट पूजा न होने से उन्हों ने यह घोषणा कर दी कि ऊहड़ म्लेच्छों के देश में हो आया है, इसलिये उसके यहाँ कोई भी ब्राह्मण किसी प्रकार की क्रिया नहीं करावे, इस दशा में मंत्री ऊहड़ ने ब्राह्मणों को बहुत लोभ बतलाया, अनेक कोशिशें की पर सब व्यर्थ हुए, सत्ता मद में उन्मत्त ब्राह्मणों ने उसकी एक नहीं मानी। कहा है "विनाश काले विपरीत बुद्धिः" तथा "अति सर्वत्रवर्जयेत्" इस कारण ब्राह्मणों के इस दुराग्रह से अपमानित एवं क्रुद्धित हो उहड़ ने विदेश से म्लेच्छों को द्रव्य देकर आमंत्रित किया, म्लेच्छों की सेना आकर ब्राह्मणों के अन्याय का बदला लेने को आक्रमण करने लगी, तब प्राण, और इज्जत की रक्षा के लिए सब के सब ब्राह्मण भीनमाल की तरफ चले गए । म्लेच्छों ने वहां भी उनका पीछा किया । आखिर विप्रों को लाचार हो यह प्रतिज्ञा करनी पड़ी कि आज से हन उपकेशपुर वासियों से एक पैसा भी नहीं मांगेगें, इतना ही नहीं किन्तु आज से उनका हमारा गुरु-यजमान का सम्बन्ध भी टूटा समझा जायेगा । उसो दिन से उपकेशपुरवासी और ब्राह्मणों का आपसी सम्बन्ध विच्छिन्न होगया। इस बात का उल्लेख भगवान् हरिभद्र सुरि ने अपनी “समराइच कहा,, नामक प्राकृत पुस्तक में किया है, उस कथा का सारांश लेकर आचार्य कनकप्रमसूरि ने संस्कृत में समरादित्य कथासार लिखा है, जिसका एक श्लोक नीचे उद्धृत है । आप लिखते हैं:- "तस्मात् ऊकेश जातीनां, ब्राह्मणाःगुरवो नहि । उएस नगरं सर्व, कर रीण समृद्धिमत् ॥८॥ सर्वथा सर्वनिमुक्त, मुएस नगरं परम् । तदा प्रभृति संजात, मिति लोक प्रवीणकम् ॥ ६ ॥ इस खेख में बतलाए हुए उहड़देव मंत्री वही हैं जिन्होंने वीर निर्वाण से ७० वर्षों के बाद उपकेशपुर नगर में महावीर का मन्दिर बनाके आचार्य रत्नप्रभसूरि के कर कमलों से प्रतिष्ठा कराई थी, वह मन्दिर आज भी विद्यमान है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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