Book Title: Oswalotpatti Vishayak Shankao Ka Samadhan
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala

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Page 29
________________ प्राचीन प्रमाण समय के बाद इनको उपकेशपुर से आने के कारण अन्य लोग उप. केशी कहने लगे। जैसे-श्रीमाल नगर से श्रीमाली, माहेश्वरी नगरी से महेश्वरी, खण्डवा से खण्डेवाल, रामपुरा से रामपुरिया, नागपुर से नागपुरिया और पाली से पल्लीवाल हुए; इसी भाँति ये उपकेशपुर से आने के कारण उपकेशी हुए। इनका यह नाम परिवर्तन का समय विक्रम की पहली या दूसरी सदी का है पर हम यदि प्रमाण ढूंड़ना चाहें तो, पहली, दूसरी सदी के प्रमाण नहीं किन्तु तीसरी या चौथी सदी के ही ढूंढ़ने चाहिए, कारण जब इस महाजन संघ का नाम जन समाज में उपकेशी या उपकेश वंश प्रसिद्ध हुआ होगा तो कोई प्रचलित होते ही तो इतिहास-पलट कर अङ्कित नहीं हुआ होगा ? इसे प्रचलित होने को कम से कम एक या दो शताब्दीयें अवश्य होनी चाहिए ताकि सर्वसाधारण में अविरुद्धगति से इस नाम का प्रचार हो जाय। अतः उपकेश वंश की उत्पत्ति के लिए विक्रम की तीजी या चौथी शताब्दी के प्रमाण खोजने चाहिए, और वे प्रमाणिक भी कहे जा सकते हैं, इसके पहले के प्रमाण खोजना केवल श्रम ही सिद्ध होता है। उपकेशवंशोत्पत्ति के प्रमाण विक्रम को तीसरी या चौथी शताब्दी के ही मिलने पर हम यह नहीं कह सकते कि इस जाति की मूल उत्पत्ति का समय भी यही है ? क्योंकि जैसे एक जन समूह चार पाँचसौ वर्ष रामपुरा में रहा और बाद में वहाँ से रवाना हो श्रीनगर को चलागया तो श्रीनगर के लोग कई समय के बाद में उन्हें रामपुरिया कहेंगे, परन्तु कालान्तर में इन रामपुरियाओं का समय निर्णय करना हो तो श्रीनगर में बसने से पूर्व का किया जाय या पीछे का ? क्योंकि श्रीनगर में बसने के पूर्व तो रामपुरिया नाम का जन्म ही नहीं हुआ था इस हालत में नाम की खोज करना व्यर्थ ही है। हाँ रामपुरा का त्यागकर श्रीनगर में बसने के बाद कितनेक समय पश्चात् के प्रमाण मिल सकेगा। परन्तु हम यह नहीं कह सक्ते हैं कि उस मूल समूह के अस्तित्व का हो यह समय है ? नहीं ! उनका अस्तित्व श्रीनगर में बसने के पूर्व अन्य नाम से जरूर था। यह अवश्य ही मानना पड़ेगा इसी भांति उपकेश वंश को समझना चहिए कि मूल समूह तो इनका भी उपकेशपुर में ही बना बाद में वहाँ से विछुड़ने पर लोग इन्हें उपकेश बंशी कहने लगे, और Shree Sud armaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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