Book Title: Oswalotpatti Vishayak Shankao Ka Samadhan
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala

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Page 28
________________ उपकेशवंश (ओसवाल ) उत्पत्ति विषयक 'प्रमाण' यदि हम किसी भी पदार्थ के नाम का निर्णय करना चाहें तो पहिले उसकी मूलस्थिति को देखना जरूरी है, क्योंकि हरेक पदार्थ का नाम कुछ २ समय बीतने पर नामाऽन्तरित हो जाता है, जैसे:-विक्रम से ४०० वर्ष पूर्व प्राचार्यश्रीरत्नप्रभसूरि ने उपकेशपुर में जैनेतरों को जैन बना के एक 'महाजन-संघ', स्थापित किया था। अनन्तर कई शताब्दियें बोतने पर उसका नाम उपकेशवंश हुआ, और वही कालान्तर में 'ओसवाल' नाम से प्रसिद्ध हुआ, इस प्रकार एक ही महाजन-संघ कालक्रम से तीन नामों से संसार में विश्रुत हुआ, ठीक यही हाल अन्य नामों का भी होता है। यदि कोई व्यक्ति वर्तमान ओसवाल जाति की उत्पत्ति का सम्यग अन्वेषण करें तो, जिस शताब्दी में इस जाति का नाम पूर्ववर्ती नामों से बदल कर ओसवाल हुआ, उस शताब्दी से पूर्व इस जाति का ओसवाल नाम से कोई इतिहास नहीं मिलेगा, इसी तरह यदि उपकेशवंश का पता लगाना चाहे तो जिस शताब्दी में इसका नाम उपकेशवंश हुआ उस शताब्दी से पहिले का उपकेशवंश का इतिहास भी अप्राप्य हो रहेगा, यह बात बहुत ठीक भी है क्योंकि जिसका जन्म ही नहीं उसका इतिहास कैसे बन सकता है ? और जब इतिहास घटना ही नहीं तो फिर उसका अन्वेषण करना "खरगोश के शिर सींग ढूँढना ही है।" अर्थात् व्यर्थ है, अतः हमें यदि ओसवालवंश का वास्तविक इतिहास खोजना ही है तो पहिले इसके नाम-विपर्यय का निर्णय कर, इसके पूर्व पूर्वतरवर्ती नामनिर्दिष्ट जाति के इतिहास का अन्वेषण करना चाहिए, अर्थात् यदि सर्व प्रथम महाजन-संघ को शोध की जाय तो असली वस्तु का पता मिल सकता है। कारण इस संघ की स्थापना विक्रम से ४०० वर्ष पूर्व हुई यो, बाद में इस संघ के लोग उपकेशपुर का त्याग कर अन्य नगरों में जा बसे, इससे कुछ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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