Book Title: Oswalotpatti Vishayak Shankao Ka Samadhan
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala

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Page 16
________________ ओसवालों की उत्पत्ति न करें, कारण ये परमार वंश के नहीं थे, केवल दोनों की नाम की समानता होने से ही कई एक इतिहासाऽनभिज्ञ मनुष्यों ने इन्हें एक ही समझने की भूल की है और इसी कारण ये शङ्काएँ पैदा हुई हैं, आगे के लिए अब ये शङ्काएँ भी निर्मूल हो जाय इसीके लिए हमारा यह प्रयास हैं। अस्तु ! अब हम यह बतलाने की चेष्टा करेंगे कि कौन २ लेखक किस २ रीति से इन उत्पलदेवों की एकता सिद्ध करते हैं और उनका हमारी तरफ से क्या परिहार है ? पाठक जरा ध्यानपूर्वक इसे पढ़ें शङ्का न० १ "मुनौयत नैणसी की ख्यात का कथन है कि-श्राबू के उत्पलदेव परमार ने ओसियां बसाई और इस उत्पलदेव का समय विक्रम की दशमी शताब्दी है यदि प्रोसवाल जाति इसी ओसियां से उत्पन्न हुई है तो यह जाति विक्रम की दशवीं शताब्दी से प्राचीन किसी हालत में नहीं हो सकती ?" समाधान-मुनौयत नैणसी की ख्यात में किसी स्थान पर यह नहीं लिखा है कि आबू के उत्पलदेव परमार ने ओसियां बसाई, पर नैणसी की ख्यात से तो उल्टी ओसियां की प्राचीनता ही सिद्ध होती है; देखिये "नैणसी की ख्यात" प्रकाशक काशी नागरी प्रचारिणी सभा पृष्ट २३३, पर लिखा है “धरणी बराह का भाई उत्पलराय किराडू छोड़ कर ओसियां में जा बसा सचियाय देवी प्रसन्न हुई माल दिया, ओसियां में देवल कराया" इसकी टिप्पणी में लिखा है "बसन्तगढ़ से मिले हुए सं० १०६8 के परमारों के शिलालेख से पाया जाता है कि उत्पलराजा धरणी वराह का भाई नहीं किन्तु परदादा था, जिनका समय विक्रम की दसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में होना चाहिये। इस प्रमाण से तो यह सिद्ध होता है कि उत्पलदेव परमार के पूर्व भी श्रोसियों समृद्धि सम्पन्न था, तब ही वो उपलराय किराडू छोड़कर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umala, Surat www.umaragyanbhandar.com

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