Book Title: Nyayavinishchay Vivaranam Part 2
Author(s): Vadirajsuri, Mahendramuni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 9
________________ न्यायचिनिश्चयधिधरण यह ग्रन्य जैन यामय तथा मौत तर्कशासकी अक्षय निधि कहा जा सकता है। अन्यकी प्रमुख विशेषता यही है किवानपने विपयोंका सर्वाङ्ग विवेचन करता है। अन्धके बारम्भमें सर्वशताका जी विवेचन किया गया है उसे देखकर भाजके विद्वान् भी दांतों तले उंगली दबा लेंगे और सहमत होंगे कि निरुपाधि तथा निर्माद सर्वज्ञताके सिद्धान्तको धर्म-गुहाने पहिलेसे माना है। विश्व पदार्थ परस्पराश्रित है और इसीलिए किसी मी एक पदार्थका ज्ञान विश्वके भलणड स्वरूपके ज्ञामकी कापमा कराता है। किसी धर्मके प्रवर्तकका अथवा मुतिके नूतन मार्गका प्रदर्शक ज्ञान आंशिक ही हो अथवा किसी विशेष देश और काल अथवा किसी विशेष जनसमुदायके ही किए हो तो उस कालिक प्रामा महीं दिया जा सकता इस युक्तिके ध्यानमें ना आने पर प्रतिके मनमें यह प्रश्न स्वतः उत्पन्न होता है कि धर्मकीर्ति द्वारा प्रतिपादित प्रयोजन सापेक्ष तात्कालिक समाधानको अन्तिम उपाय माना जा सकता है या नहीं। ग्रन्थका टाइप, कागज, साफ छपाई सथा अक्षरोंकी उठान जिज्ञासुके लिए विशेष आकर्षक है। इन सच सुविधाओंके होनेपर भी ग्रन्थ उसके लिए प्राश न होगा जिसमें ताश्विक रहि, ज्ञामकी मतम तृष्णा तथा बाधाओंसे जूझमेकी शक्ति म होगी। भूतकालमें भारतने धर्मकीर्तिकी चुनौतीको अस्वीकार नहीं किया था, अपितु बाधाएं प्रेरक बनी थीं। भाशा है तथा विश्वास भी है कि वर्तमान तर्कशापाके जिज्ञासु भी इस प्रन्धकी क्लिष्टताका सामना करेंगे । ग्रन्थके मननमें जितना परिश्रम और कर होगा फक भी उतना ही सुखद होगा। इसके द्वारा वर्तमान विश्वविद्यालयों के छात्रों को मतीतके भारतीय विद्वानोकी विशाल बुद्धिपर पुनः श्रद्धा जम जायगी, क्योंकि ये समस्याकी महामतासे नहीं घबराते थे। भौतिक अगसमें अभी एवरेस्टपर विजय पायी गयी है तब यह कहना अमर्थक न होगा कि हमारे पूर्वजों द्वारा निर्मित बौदिक एवरेस्टकी विजय मी वैसाही आकर्षक प्रभाष हमारी .वर्तमान तथा भावी पीठीपर न छोड़ेगी? नालन्दा सातकौड़ी मुखोपाध्याय [प्रधान संचालक पाली इंस्टीट्यूट नालन्दा ]

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