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प्रस्तावना ५ सन्दिग्धसाधन-'सुगतका मरण होता है क्योंकि वह बागाविवाला है' इस अनुमानके रण्यापुरुष दृष्टान्तम रागादिमय साधन सन्दिग्ध है।
सन्दिग्धोभय-'सुगत असर्थ है क्योंकि वे रागादिघाले हैं। इस अनुमानमै रयापुरुष अष्टान्त में रागादिमख और असर्वशरद दोनों सन्दिग्ध हैं।
. प्रदर्शितान्वय-जैसे 'शब्द अनित्य है क्योंकि यह घटाविकी तरह कृतक है' इस अनुमानमें 'जो जो कृतक होते है वे अनित्य होते हैं। इस प्रकार सम्वयम्यामिपूर्वक हातका प्रदर्शन नहीं किया गया अतः घटादिवत् यह अप्रदर्शिताग्वष है।
धिपरीतामवय-उस अनुमानमें 'जो अनित्य है के कृतक है। इस प्रकार विपरीतम्याप्तिपूर्वक पटान्तका कहना विपरीताम्बब है। क्योकि बिजली लादि अनित्य होकर भी सक-किसीके प्रयत्नसे उत्पच होनेवाली नहीं है। अपने आप चमकती है। अनन्धय-जहाँ श्रन्धयध्याति न मिलती हो वहाँ अषयाष्टान्त देना अनन्धय कहलाता है।
व्यतिरंकव्याप्तिके ९सष्टान्तामास१ साध्यम्यतिरे ऋविकल-'शब्द नित्य है क्योंकि यह अमूर्त है' इस अनुमानके परमाणु रहन्तमें साध्यन्यतिरेक नहीं पाया जाता क्योंकि परमाणु निष्य है।
- २ साधनध्यतिरेकविकल-उक्त अनुमानमें कर्मका रक्षान्त साधनम्यतिरेक विकल है क्योंकि फर्म अमूर्त होता है।
३ उभयचतिरेकविकल-उक्त अनुमानमें आकाशका यात उभयधिकल है क्योंकि प्राकाश निस्य भी है और अमूर्त भी।
" सन्दिग्धसाध्यस्यतिरेक-सुगत सर्वज्ञ हैं क्योंकि उनके पचन प्रामाणिक है' इस अनुमानके रण्यापुरुष प्रान्तमें साम्पतिरेक सन्दिग्ध है। सर्वज्ञता और असर्चशता दोनों ही चित्तके धर्म होनेसे अतीन्द्रिय हैं और इसीलिए सन्दिग्ध भी है।
५ सन्दिग्धसाधनयतिरेक-'जैसे शब्द भनित्य है सत् होनेसे' इस अनुमानमें आकाशका स्टाम्स इसलिए साधनष्यतिरेकधिकल है कि अतीन्द्रिय होमेसे उसके समावका निश्चय होना कठिन है।
६ सनिग्ध उभयन्यतिरेक-हरिहराडि संसारी हैं क्योंकि वे अविचाधाले हैं. इस अनुमान के बुद्धके रान्समै संसारिधिको ध्याति और अविद्याझी ध्यावृत्ति दोभी सन्दिग्ध हैं।
७ मध्यतिरेक-शब्द नित्य है अमूर्त होनेसे । जो निस्य नहीं है वह अमूर्त भी नहीं है जैसे कि घट । यहाँ यद्यपि नित्यत्व और अमूसत्व दोर्मोफी व्यावृत्ति पाई जाती है पर अमूर्तस्वकी व्यात्ति निरयरवकी व्यावृत्तिके कारण नहीं है क्योंकि कर्म अभित्य होकर भी भमूर्सिक है।
विपरीतम्पतिरेक-चूर्वोक अनुमानमें जो सत् नहीं है वह भनित्य नहीं है जैसे भाकाश । यहाँ साधनकी व्यावृत्ति साध्यको म्याति दिखाई गई है जबकि साध्यकी ज्यावृत्ति में साधनको व्यावृति दिखाई जानी चाहिए।
१ प्रदर्शिसभ्यतिरेक-शब्द भनिय है क्योंकि यह सत् है जैसे आकापा । यहाँ 'जो अनिरप महीं है वह सत् भी नहीं हैस प्रकारकी व्यतिरेक म्याप्तिका कथन नहीं किया गया है। इस तरह १८ रष्टान्ताभास होते है।
बाद-चावामास-जबसे मनुष्य में विचारशक्तिका विकास हा तभीसे पक्षप्रतिपक्षके रूपमें विचारधारा टकराई भी है। इससे पादप्रवृत्तिका जन्म हुआ। नैयायिक कथा के तीन भेव मानते है-- बाद, जल्प और वितण्डा । वीतराग कथाका नाम 'बाद' है और विजगांधुकथा जल्प और वितण्डा कहलाती है। जब तस्व-निर्णयके उपसे समानधर्मियों में या गुरुशिष्यों में पक्ष-प्रसिपक्षको लेकर भी चर्चा चलती है तम यह चर्चा 'वाद' कहलाती है और तश्व-संरक्षणके साम्प्रदायिक ध्येमसे होनेवाला पााचा 'जल्प' कहलाता है। यही जप जब अपने पक्षका स्थापन करके केवल प्रतिपक्षका वण्डन ही