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न्यायचिनिश्चयविवरण
स्वीकार करने में उन्हें क्या बाया है ? अतद् व्याक्ति या वुद्धिपत अभेद प्रतिविम्ब रूप अपोहका निर्वाह भी सायके माने बिना नहीं हो सकता । अतः सदृशपरिणाम रूप ही सामान्य मानना चाहिए। यह स्वलक्षणकी तरह वस्तु भूत परमार्थसत् है संकृतिसत् नहीं। शब्द और विकल्पज्ञान इसी सामान्यसे विशिष्ट सामान्यधिशेषाम्सक वस्तुको विपथ करते हैं, न केवल सामान्यात्मक और न केवल विशेषामिकको ही। शब्दको सुनकर में 'यह गी है ऐसा विध्यात्मक बोध होता है न कि 'अगी नहीं है। ऐसा निधारमक । प्रत्येक पदार्थ सदशा-सरशात्मक है। एक दण्यध्यक्तिका अपनी पर्यायोंमें अनुगत प्रत्यय अपर्वतासामान्यसे होता है तथा विभिक द्रव्योंमें अनुगतप्रत्यय तिर्यक् सामान्यसे । अवतासामान्य घरस्तविक अभेद रूप है जय कि तिर्यक् सामान्य सादृश्यरूप । इसमें अभेद व्यवहार उपचारसे ही होता है। सात्पर्य यह कि बस्तुको स्थिति जय स्वयं सामान्यविशेषात्मक है सब प्रत्यक्षकी तरह भनुमान भी उभयात्मक अर्थ को ही विषय करता है न कि केवल सामान्यको। प्रमेय विध्यसे भमाणहविष्यको कल्पना भी उचित नहीं है क्योंकि प्रमेयमें सामान्य और विशेष रूपसे ,विध्य है ही नहीं। यह तो एक ही प्रकारका है। अतः प्रमाणभेवका आधार प्रमेयभेद न होकर प्रतिभासभेद ही है।
सामान्यधिशोषा:मक या अनेकान्तात्मक पदार्थ में ही साध्य-साधनभावकी व्यवस्था होती है। केवळ भेदात्मक या अभेदात्मक पदार्थ न तो साध्य बन सकते हैं और न साधम ।
___ दृशान्त-जैसा कि पहले लिखा जा चुका है कि अनुमानके आवश्यक अफ दो ही है-प्रतिज्ञा और हेतु । पर शिथ्योंके अनुमहके लिए स्याम्त भाविकी उपयोगितासे इन्कार नहीं किया जा सकता। साध्य और साधनके अविनाभाष सम्बन्धका ज्ञान जहाँ होता है उस प्रदेशको रान्त कहते हैं और रान्तके वचनको उदाहरण । चूंकि प्यासि, अस्य और म्यतिरंक या साधर्म्य या वैधयं रूपसे दो प्रकार की होती है अतः शन्त भी सनद और बैदामा दोनहार हो जाते है। वस्तुतः जबष्टान्त अनुमानका नियत मधयक नहीं है तब प्रत्येक अनुमानमें दोनों दृष्टान्त या किसी एक दशस्तकी उपलम्धि हो ही, ऐसा नियम नहीं किया जा सकता । इसीलिए 'सब पड़ार्थ भनेकातास्मक है सत् होनेसे इस अनुमानप्रयोगमै सबको पक्ष करनेके कारण साधर्म्य स्धान्त तो है ही नहीं पर वैघHदृष्टान्त भी खरविषाण आदि पुद्धिकल्पित ही बताये जाते हैं। केवल व्यतिरेकी अनुमानमें यद्यपि यतिरेक टास्त वस्तुभूत उपलब्ध हो जाता है पर अग्याष्टान्त नी ही मिलसा ।
सब क्षणिक है सत् होनसे' इस मनुमान, यद्यपि सबको पक्ष करनेके कारण पक्षसे भिन्न किसी रातका अस्तित्व नहीं है कि पक्षातर्गत विजली आदि प्रसिद्ध क्षणिक पदार्थीको शिष्यों को समझामेके लिए शन्त मान लिया जाता है।
दृष्टान्त न होकर भी जो हटान्तकी तरह मालूम पड़े बह रशम्ताभास है। इसके साध्यविकल, साधनधिकल, उभयविकल आदि भेद हो जाते हैं। नौ अन्षय व्याक्षिमें तथा नी व्यतिरेकथ्यासिमें। अन्वयव्यासिके र साभास इस प्रकार हैं
साध्यधिकल-शरद नित्य है क्योंकि यह अमूर्त है। इस अनुमानमें फर्म-क्रियाका रास्त साध्यधिकल है। क्योंकि वह नित्य न होकर भनिग्म है।
२ साधनविकल-उस अनुमानमें परमाणुका दृष्टान्त साधन विकल है क्योंकि परमाणु मूर्सिक होता है।
उभयधिकल-उक्त अनुमानमें घटका स्टान्त उभयविफल है क्योंकि घर मूर्तिक है और भनित्य भी।
सन्दिग्धसाध्य-'सुगत रागादिवाले है क्योंकि वे तक है। इस अनुमानमें स्म्यापुरुषका रशान्त साध्यचिकल है क्योकि उसमें रागादिका सद्भाष या अभाव अनिश्चित है। सराग मी वीसरागकी तरा चेष्टाएँ करते देखे जाते हैं अतः येष्टाओंसे वीतरागता या सरागताका सुनिश्चय नहीं किया जा सकता।
न किया जा