Book Title: Niyam Sara Author(s): Vijay K Jain Publisher: Vikalp View full book textPage 9
________________ मंगल आशीर्वाद - आजीवन अन्न व षट्रस त्यागी स्थविराचार्य १०८ श्री संभवसागर जी मुनिराज महान् अध्यात्मिक योगीन्द्रजी श्री कुन्दकुन्दाचार्य के द्वारा रचित आत्मा को जगाने वाला यह “नियमसार' ग्रन्थ है। सद्धर्मानुरागी अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी श्री विजय कुमार जैन ने इस महान् ग्रन्थ को अंग्रेजी व्याख्या सहित तथा अन्य आचार्यों के अनमोल वचनों का भी संग्रह कर तैयार किया है। सामान्य पाठकों को भी ज्ञान प्राप्त होने हेतु हिन्दी में भी अर्थसहित व्याख्या दी गई है। 'नियमसार' ग्रन्थ द्वादशांग के सारभूत चार अनुयोगों में भी व्यवहारनय-निश्चयनय की अपेक्षा से भेद को स्पष्ट करते हुए भव्यजीवों को मोहमार्ग से बचाकर मोक्षमार्ग में लगाने वाला है; अतः सभी के लिये पठनीय है। पारमार्थिक दृष्टि से नियमों में दृढ़ता को प्राप्त करने के लिए इस ग्रन्थ का पाठन आवश्यक ही है। नियमों में दृढ़ता के बिना सद्गति संभव नहीं है। विजय कुमार जी ने संसारी जीवों के मार्गदर्शनरूप जो यह प्रयास किया है, उनको हमारा शुभाशीर्वाद है। आचार्य संभवसागर मुनि मार्च 2019 शिविरस्थान - त्रियोगाश्रम, सम्मेद शिखरजी (vii)Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 412