Book Title: Niyam Sara Author(s): Vijay K Jain Publisher: Vikalp View full book textPage 7
________________ DIVINE BLESSINGS मंगल आशीर्वाद - परम पूज्य सिद्धान्तचक्रवर्ती श्वेतपिच्छाचार्य १०८ श्री विद्यानन्द जी मुनिराज ग्रन्थराज ‘नियमसार' की अन्तिम गाथा में आचार्य कुन्दकुन्ददेव कहते हैं - णियभावणाणिमित्तं मए कदं णियमसारणामसुदं । णच्चा जिणोवदेसं पुव्वावरदोसणिम्मुक्कं ॥१८७॥ अर्थ - पूर्वापर दोष रहित जिनोपदेश को जानकर मैंने निज भावना के निमित्त से “नियमसार' नामक शास्त्र बनाया है। 'नियमसार' अध्यात्मविद्या का सर्वोत्कृष्ट ग्रन्थ है। इसे आचार्य कुन्दकुन्द ने वास्तव में अपने स्वयं के लिए ही लिखा है, जैसा कि इस गाथा के णियभावणाणिमित्तं पद से स्पष्ट होता है। हम कह सकते हैं कि 'नियमसार' आचार्य कुन्दकुन्ददेव की व्यक्तिगत दैनन्दिनी (personal diary) है। (v)Page Navigation
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