Book Title: Niryukti Panchak
Author(s): Bhadrabahuswami, Mahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 5
________________ प्रकाशकीय आगम-सम्पादन का कार्य दुरूह ही नहीं, श्रमसाध्य, समय-सापेक्ष, बौद्धिक जागरूकता एवं अन्तःप्रज्ञा के जागरग का प्रतीक है। तेरापंथ के नवम आचार्य एवं जैन विश्व भारती संस्थान के प्रथम अनुशारता गुरुदेव श्री तुलसी ने ४५ वर्ष पहले शोध के क्षेत्र में भगीरथ प्रयत्न किया था, जिसके सारथी बने वर्तमान आचार्य श्री महाप्रज्ञ । इस्ट ज्ञानयज्ञ में उन्होंने अपने धर्म-परिवार के अनेक साधु-साध्वियों को नियुक्त किया, फलस्वरूप बत्तीस आगमों का मूल पाठ सम्पादित होकर प्रकाशित हो चुका है। भगवती भाष्य, आचारांग-भाष्य और व्यवहारभाष्य जैसे महत्त्वपूर्ण ग्रंथों का कार्य भी पूर्ण हुआ है। एकार्थक कोश, निश, देवीरोश, भिशु आग्म-विषय कोश तथा जैन आगम वनस्पतिकोश भी प्रकाशित होकर सामने आ चुके हैं। प्रस्तुत ग्रन्थ 'नियुक्तिपंचक' इसी श्रृंखला की एक कड़ी है, जिसे सम्पादित किया है समणी कुसुमप्रज्ञाजी ने । नियुक्ति आगमों की प्रथम व्याख्या है अत: व्याख्याग्रंथों में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। ऐ आचार्य भद्रबाहु द्वारा निर्मित हैं। इनमें आगमों के महत्वपूर्ण एवं पारिभाषिक शब्दों की निक्षेप पद्धति से व्याख्या की गयी है। निर्मुक्तिपंचक में दशवकालिक, उत्तराधयन, आचारांग, सूत्रकृतांग एवं दशांश्रुतत्कंध-इन पांच नियुक्तियों का समाहार है। नियुक्तियों का हस्तप्रतियों से समालोचनात्मक रूप से पाउ-संपादन प्रथम बार प्रकाशित हो रहा है, यह संस्था के लिए गौरव का विषय है। ग्रन्थ में दिए गए पद-टिप्पण नियुक्तियों की गाथा-संख्या निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। इस ग्रंथ में पाठ-संपादन तथा पाठ-विमर्श का वैशिष्ट्य तो मुखर है ही साथ ही साथ ग्रंथ में १४ महत्त्वपू परिशिष्ट भी संदृब्ध हैं। गाथाओं का हिन्दी अनुबाद होने से ग्रंध की महत्ता और अधिक बढ़ गयी है। हिन्दी अनुवाद में मनीषी मुनि श्री दुलहराजजी की श्रमनिष्ठा बोल रही है। ग्रंथ की बृहद् व्याख्यात्मक भूमिका नियुक्ति साहित्य : एक पर्यवेक्षण' नियुक्तियों के अनेक गंभीर विषयों को स्पष्ट करने वाली है। शोध कार्य धैर्य, परिश्रम, निष्ठा, जागरूकता एवं सातत्य मांगता है। समणीश्री कुसुमप्रज्ञाजी ने इन सभी गुणों को मन से जीया है। यही वजह है कि ग्रन्थ की सम्पूर्ण संयोजना में उनकी प्रतिभा और साधनग मुखर हुई है। समणी कुसुमप्रज्ञाजी लगभग २० वर्षों से शोधकार्य में संलग्न हैं। इससे पूर्व वे व्यवहार भाष्य एवं एकार्थक क्रोश का संपादन कर चुकी हैं। नियुक्तिपंचक' का सम्पादन नारी गति का गैरव है। आचार्य श्री तुलसी एवं आचार्य श्री महान ने नारी जाति को विद्या और अनुसंधान के क्षेत्र में जो साहस, बुद्धि-वैभव एवं आत्म-विश्वास दिया है, युगों-युगों तक उनका कर्तृत्व इतिहास में अमिट रहेगा। ग्रंथ की प्रेरणा और दिशा निर्देशन का प्राण तत्त्व है— श्रद्धेय गुरुदेव तुलसी एवं आचार्य श्री

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