Book Title: Navtattvasangraha tatha Updeshbavni
Author(s): Atmaramji Maharaj, Hiralal R Kapadia
Publisher: Hiralal R Kapadia

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Page 199
________________ १७२ मा श्रीविजयानंदसूरिकृत [६ संवरप्रथमव्रते षट् भंगा त एव सप्तगणाः कथं? षट्गुणने ३६ द्वितीयत्रतस्य ६ षट् प्रथमव्रतस्य प्रक्षेप्यन्ते यथा ४८; एवं सर्वत्र ७ गुणाः षट्प्रक्षेपः प्रा: १,२,३,४,५,६, ३६ प्रा १,२,३,४,५,६ भंगा एकसंयोगे १.. द्विकसंयोग२ प्रा११११११ प्रा २२२२२२ प्रा३३३३३३ मृ १२३४५६ मृ१२३.४५६ मृ १२३४५६ अ६६६६६६ त्रिकसंयोग ३ प्रा४४४४४४ प्रा ५५५५५५ प्रा ६६६६६६ एवं मृ १२३४५६ र १२३४५६ मृ.१२३४५६ अ६६६६६६. अ६६६६६६६६६६६६ १२१६, एवं अग्रेऽपि भावना कार्या. प्रा११११११. प्रा४४४४४४ मृ१२३४५६ मृ१२३४५६ प्रा२२२२२२ प्रा५५५५५५ मृ१२३४५६ मृ१२३४५६ द्वितीयव्रतस्य षट्, एवं १२, । मृ८२ १८१ प्रा३३३३३३ प्रा ६६६६६६ । एवं ३६ मध्ये प्रक्षेपे ४८ | प्रा ९ ३२७ । ८१ मृ१२३४५६ मृ१२३४५६ १२४३ ९९९ ७२९ १७२९० एवं अग्रेतन अष्ट यंत्र ज्ञेयं १२ मे ३३३/२२२/१११ क का नव भेग्युक्त २ भेद ४९ भंगयंत्र, म १ व २ का ३ मावा ४ ३२१ ३२१ अनु माका ५वाका ६ मावाका ७ कर १ करा२ कराकरा ३ सप्त त्रि २१; एह एकवीस भंगाका स्वरूपम्. नव भङ्ग्या तु प्रथमत्रते भगा नव ९, ततो द्विकादि व्रते संयोगे दशगुणित नवकप्रक्षेपक्रमेण तावद् गन्तव्यं यावदेकादशवेलायां द्वादशत्रतसंयोगभङ्गसङ्ख्या ९९९९९९९९ ९९९९; ए सर्व नवभंगीनां मांगा २२२१११ कका ३२१ ३२१ । षट्भग्युत्तरभेद २१ भंगयंत्रम् म व का ... س اس منع ع م norm Mon. | ૨૨૦ ?云飞并口信访研w the ७९२ ९२४ ७९२ ४९५ - ५९०४९ ५३१४४१ ४७८२९६९ ४३०४६७२१ ३८७४२०४८९ ३४८६७८४४०१ ३१३८१०५९६०९ २८२४२९५३६४८१ १६०३८० ३२४७६९५ ४६७६६८०८ ४९१०५१४८४ ३७८८१११४४८ २१३०८१२६८९५ ८५२३२५०७५८० २३०१२७७७०४६६ ३७६५७२७१५३०८ २८२४२९५३६४८१ २२० ६ ३ अ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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