Book Title: Navtattvasangraha tatha Updeshbavni
Author(s): Atmaramji Maharaj, Hiralal R Kapadia
Publisher: Hiralal R Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 258
________________ तत्त्व ] यति सूक्ष्म संपराय जघन्य बादर एकेंद्री पर्याप्त सूक्ष्म बादर सूक्ष्म -35 बादर सूक्ष्म बादर बेइंद्री 33 95 "" तेइंद्री 99 33 35 39 39 "2 33 33 23 35 अपर्याप्त पर्याप्त अपर्याप्त नवतत्त्व संग्रह (१६७) अथ स्थितिबंध अल्पबहुत्व संख्या स्तो १ असं २ वि ३ ४ 39 पर्याप्त "" 39 पर्याप्त "3 चाउरिंद्री पर्याप्त 33 33 पर्याप्त 33 अपर्याप्त Jain Education International 56 39 23 39 "" उत्कृष्ट 33 95 "" जघन्य 33 उत्कृष्ट "" जघन्य $3 उत्कृष्ट 22 " 33 33 23 35 ८ ९ 33 सं १० वि ११ १२ १३ १४ १५ १६ १७ 23 " "2 33 23 ५ 55 6 ू चरिंद्री अपर्याप्त 33 35 "" 35 33 असंशी पंचेंद्री पर्याप्त जघन्य अपर्याप्त 13 "" 33 यतिना देशविरति जघन्य उत्कृष्ट "" 33 संज्ञी 33 19 पर्याप्त 19 35 33 "" "" 39 अविरतिसम्यग्दृष्टि पर्याप्त जघन्य अपर्याप्त थावरचतुष्क ४, एकेंद्री १, विकलत्रिक ३, आतप १ अधिक 33 पर्याप्त " पर्याप्त जघन्य उत्कृष्ट 33 अपर्याप्त जघन्य ,, १८ पर्याप्त ( १६८) अथ ४१ प्रकृतिका अबंध कालयंत्र प्रकृति नरकत्रिक ३, तिर्यचत्रिक ३, उद्योत १; एवं सर्व ७ "" उत्कृष्ट स्थितिबंध स्थिति "" 35 उत्कृष्ट " उत्कृष्ट "" जघन्य 38 उत्कृष्ट 35 वि १९ " २० ,, २१ सं २२ वि २३ २४ 95 " २५ सं २६ " 23 " २८ , २९ 33 35 35 "3 २२९ 97 33 २७ ३० ३१ ३२ ३३ ३४ ३५ ३६ अबंधकाल १६३ सागरोपम, ४ पल्योपम मनुष्य-भव अधिक जुगलियाने १८५ सागरोपम, ४ पल्योपम मनुष्यभव प्रथम संहनन वर्जी ५ संहनन, प्रथम संस्थान वर्जी ५ संस्थान, अशुभ गति १, अनंतानुबंधि ४, १३२ सागरोपम मनुष्य भवे अधिक यति भव मिथ्यात्व १, दुर्भग १, दुःस्वर १, अनादेय १, आदि देइ पंचेंद्रिीने अबंधस्थिति utuत्रिक ३, नीच गोत्र १, नपुंसक वेद १, स्त्रीवेद १ अथ १६३।१८५ का ते पूरवाना ठाम लिख्यते. विजय आदिकने विषय दो २ वार तीन वार अच्युतने विषय १३२ एक ग्रैवेयकने विषे १६३, इम तमाने विषे १८५. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292