Book Title: Navtattvasangraha tatha Updeshbavni
Author(s): Atmaramji Maharaj, Hiralal R Kapadia
Publisher: Hiralal R Kapadia

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Page 279
________________ २५० श्रीविजयानंदसूरिकृत [९ मोक्षसुषसे चोमास करी ग्यानकी लगन परी तिनकी कहन करी ग्यानरूप ठायो है भव्य जन पठन करत मन हरपत ग्यान की तरंग देत चित्तमे सुहायो है संवत तो मुंनि कर अंक 'इंदु संप धर कातिक सुमास वर तीज बुध आयो है ३ दोहा-ज्यान कला घटमे वसि, रसेसु निज गुण माहि परचे आतमरामसे, अचल अमरपुरि जाहि १ संघ चतुर्विध वांचिउ, ग्यानकला घट चंग गुरुजन केरे मुख थकी, लहिसो तत्वतरंग २ इति श्रीआत्मारामकृत नवतत्त्वसंग्रह संपूर्ण. लिपीचक्रे 'वि(बि)नोली' मध्ये, शुभं भवतु. वाच्यमानं चिरं नन्द्यात्. श्रीरस्तु. १ १९२७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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