Book Title: Navtattvasangraha tatha Updeshbavni
Author(s): Atmaramji Maharaj, Hiralal R Kapadia
Publisher: Hiralal R Kapadia

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Page 270
________________ तत्व ] नवतत्त्वसंग्रह २४१ प्रक्षेपे ६; भांगा २१६. जुगुप्सा प्रक्षेपे षट्. भांगा २१६. उभय प्रक्षेपे सात हुइ भंग २१६. सर्व एकत्र करे ८६४. ए अपूर्वकरणना हेतु. ८ बादरका यंत्रक - १1१; ४/९. कषाय ४, योग ९. द्विक्संयोगे ३६. ए द्विकसमुदाय. बादर पांच बंधक के वेदका पिण उदय है; इस कारण ते वेद प्रक्षेपे. तीन हेतु भांगे त्रिगुणे करे १०८. ए तीन हेतुसमुदाय. सर्व एकत्र करे १४४ भंग. ए बादर कषायना हेतु. सूक्ष्मके एक कषाय एकैक योगसे नव योग साथ ९ द्विकयोग, उपशांतके नव हेतु एवं क्षीणके नव हेतु. सयोगीके सात हेतु. सर्व गुणस्थानना विशेषबंध हेतु संख्या ४६८२७७० इति गुणस्थानकमे बंध हेतु समाप्त. इति श्रीआत्माराम संकलता ( ना ) यां बन्धतत्त्वमष्टमं सम्पूर्णम्. अथ अग्रे 'मोक्ष' तत्त्व लिख्यते. प्रथम तीन श्रेणी रचना. (१७९) अथ गुणश्रेणिरचनायन्त्रं शतकात् १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ १० ११ सम्यक्त्वप्राप्ति आदि लेइ सम्यक्त्व प्राप्ति देशविरति सर्ववर अनंतानुबंधिविसंयोजन दर्शनमोहनीयक्ष उप ( शम) श्रेणि चढता उपशांत मोह १२ मे क्षपकश्रेणि चढता क्षीणमोह सयोगी केवली अयोगी केवली निर्जरा स्तोक १ असंख्य 55 33 33 33 23 33 59 29 गुणा "" 31 33 13 33 5 55 19 39 "3 काल अल्प- ( १८० ) उप (शम) श्रेणियन्त्रम् आवश्यक निर्युक्तेः बहुत्व असंख्य ११ १० 33 33 33 353 "3 ५ ४ ३ २ स्तोक १ 33 23 39 ९ ८ ७ ६ "" संज्वलन लोभ | अप्रत्याख्यान लोभ | प्रत्याख्यान लोभ संज्वलन माया | प्रत्याख्यान माया संज्वलन मान | अप्रत्याख्यान मान | प्रत्याख्यान मान संज्वलन क्रोध | अप्रत्याख्यान क्रोध | प्रत्याख्यान कोध पुरुषवेद हास्य | रति | शोक | अरति | भय | जुगुप्सा अप्रत्याख्यान माया स्त्री नपुंसक मिथ्यात्वमोह मिश्रमोह अनंतानुबंधि / अनंता अनंता क्रोध सम्यक्त्वमोह अनंतानुबंधि मान माया लोभ क्षपकश्रेणिखरूपयत्र आवश्यकनियुक्ति थकी लिखतोऽस्ति ( लिखितमस्ति ). चरम समये पांच ज्ञानावरणीय ५, च्यार दर्शनावरणीय ४, पांच अंतराय ५ एवं सर्व ९४ पेपे. बार गुणस्थानके जद दो २ समये बाकी रहे तदा पहिले समय निद्रा १, प्रचला १, देवगति १, देवानुपूर्वी १, वैक्रिय शरीर १, वैक्रिय अंगोपांग १, प्रथम संहनन वर्जी ५ संहनन, एक संस्थान वर्जी पांच संस्थान ५, तीर्थ (कर ) नाम १, आहारकद्विक २ एवं सर्व १९ प्रकृति पहिले समय पेपवे. जो तीर्थकर होय तो १९ प्रकृति न होय तो तीर्थकर ( नामकर्म ) टाली १८ प्रकृति पेपर ए प्रथम. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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